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अध्यात्मकल्पनुम
[ दशवों परन्तु ऐसा करना तो ठीक नहीं है । इस लिये बांसकी नलीको उसी वृक्षके नीचे गाड़ कर वह स्वयं काकिणी लेनेके लिये चल दिया । जिस वृक्षके नीचे भोजन किया था वहां जाकर देखा तो वहां काकिणी नहीं मिली। पोछा लौट कर देखा तो जान पड़ा कि चोर ने गड्डा खोद कर बांसकी नलीको भी निकाल कर ले गये है। इस प्रकार दोनोंको खोकर अत्यन्त दुःखी हुआ। घर गया तो वहां खानेको भी मुह ताकना पड़ा और सगे सम्बन्धियों ने भी उसकी हँसी उड़ाई।
उपनयः-जिसप्रकार उस गरीब पुरुषके पास आरम्भमें एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी, और जब अत्यन्त प्रयास करने पर द्रव्य प्राप्त हुआ तब सवा दोकड़ेकी एक काकिणीके लोभसे सर्व खो दिया और दोनोंसे भ्रष्ट होकर गरीबका गरीब ही रहा । इसीप्रकार तू भी स्मरण रखना कि अन्तराय कर्मके उदयसे संसारीपनमें कामभोगकी प्राप्तिं न होती हो इसलिये तू देशसे सर्वसे चारित्र ले और इसके पश्चात् कामभोगकी अभिलाषा करे तो तुझे परिणाममें कामभोग भी नहीं मिल सकता है और चारित्रसें भी भ्रष्ट हो जाता है; अतएव ऐसा नहीं करना चाहिये । उभयभ्रष्ट होनेवाले अनेकों पुरुष होते हैं । इसीप्रकार थोड़ेसे लोभ निमित्त सम्पूर्ण भवको विष समान बनानेवाले भी अनेकों पुरुष होते हैं । इसीप्रकार अमुक व्रत नियम लेकर छोड़े हुए पदार्थों का फिरसे सेवन करनेकी अभिलाषा रखते हैं, परन्तु संसारका क्रम ऐसा है कि छोड़ी हुई वस्तु फिरसे नहीं मिल सकती है
और उसकी इच्छा करनेवालेका त्याग करनेका पुण्य नष्ट हो जाता है । इस प्रकार दोनोंसे भ्रष्ट होता है । त्यागसे होने वाला मानसिक सन्तोष तथा नहीं छोड़नेवालेको होनेवाला स्थूल कल्पित सन्तोष ये दोनों उसको नहीं मिल सकते हैं। दूसरी