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अध्यात्मकल्पद्रुम
[ नवौं लिये उसको लम्बे समयके मित्रकी संज्ञासे सम्बोधित करते हैं । जिससे काम निकालना हो उससे मधुर भाषण करनेसे कार्य शिघ्रतया होता है । हे मित्र मन ! तूं किस कारण मुझे संसारमें फक देता है ? तूं जो बुरे संकल्प करता है उनको यदि छोड़दे तो मेरे भवके फेरे नष्ट होजा । जो लम्बे समयके मित्र होते हैं वे एक दूसरे की बातको मानते हैं इसलिये कृपया तूं भी मेरी प्रार्थना स्वीकार कर और इन सब तूफानोंको तिलांजली देदे ।
मनको इसप्रकार बारम्बार प्रार्थना करनेसे उस विषयमें लक्ष्य रहता है और अन्त में विकल्प कम होजाते हैं । इसप्रकार बारम्बार प्रार्थनाका पुनरावर्तन होता रहे तो फिर अन्तमें मनपर अंकुश लगजाता है, यह दूसरी सीढ़ी ( Stage ) है। यह सीढ़ी प्राप्त कर लेनेपर समझना चाहिये कि जीव उसके साध्यविन्दु के बहुत समीप पहुंच गया है। . "नरकसे डरता हूं" इसका यह मतलब है कि इस भव तथा परभवमें होनेवाली अनेक पीड़ाओंसे डरता हूं।
मनसे प्रार्थना करने में यह प्रयोजन है कि उस बातका मनपर बारम्बार प्रभाव डालना । कार्यसिद्धिकी यह प्रथम सिदी है।
मनपर अंकुशका सरल उपदेश. स्वर्गापवर्गों नरकं तथान्त
मुहूर्तमात्रेण वशावशं यत् । ददाति जन्तोः सततं प्रयत्नात् ,
वशं तदन्तःकरणं कुरुष्व ॥३॥ ...... " वश या अवश मन क्षणभरमें स्वर्ग, मोक्ष अथवा नरक अनुक्रमसे प्राणीको प्राप्त कराता है, इसलिये यत्न