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अधिकार ] विसदमनाधिकार भारोहित होता जाता है । एक न एक गुणस्थानमें भी गुणोंकी बहुत तरतमता है । जीव जब ऊच स्थितिकी और प्रयाण करता है तब उसके विचार भी शुद्ध होते जाते हैं। मनको तो यहां केवल आक्षेप है । मनको कहा जाता है कि तुमे यह भय लगता होगा कि कदाच यह जीव मेरी संगतीका परिलाग कर देगा, परन्तु तूं तो मेरे समान असंख्य जीवोंको तेरे निवासस्थानरूप उपयोगमें ला सकता है। इस सबका सार यह है कि जब शान्तभाव प्राप्त हो उस समय मनको भलिभांति समझा कर, वस्तुस्थितिका भान कराके उस पर आधिपत्य स्थापित कर लेना चाहिये । ...... परवश मनवालेका भविष्य. पूतिश्रुतिः श्वेव रतेर्विदूरे,
कुष्टीव संपत्सुदृशामनहः । अपाकवत्सद्गतिमन्दिरेषु, - नार्हेत्प्रवेशं कुमनोहतोऽङ्गी ॥ ११ ॥
. . . " जिस प्राणीका मन खराव स्थितिमें होनेसे संताप उठाया करता है वह प्राणी कृमिसे भरपूर कानवाले कुत्ते के समान मानन्दसे बहुत दूर रहता है, कोदीके समान लक्ष्मी सुन्दरीको वरनेमें अयोग्य हो जाता है और चाण्डालके समान शुभगति मन्दिरमें प्रवेश करने योग्य नहीं
रहता है।"
विवेचन-अस्थिर मनवाले. पुरुष आनन्द, पैसा या अच्छी संगती नहीं पा सकते हैं । सम्पूर्ण शरीरसे दुर्गन्धी भावी .१ प्रतिश्रुतिश्चेव इति वा पाठः
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