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अधिकार ] चितदमनाधिकार
[३३७ २ मनवश करनेका उपदेश।
उक्त हकीकत अधिकतया स्पष्ट कीगई है और साथमें भय भी बतलाया गया है कि मनको वशमें न करोगे तो संसारमें भटकते फिरोगें। (३) ३ मनोनिग्रह विना बाह्यक्रियाका निस्फसपन । ___यम, नियम, तप, ध्यान आदि सर्व क्रिया, ज्ञान और वर्तन मनोनिग्रह विना व्यर्थ हैं यह चार श्लोकोंमें बताया गया है। (५-६-७-१२) ४ मनके वशीभूत होनेसे संसारभ्रमण ।
तीन दृष्टान्तोंसे जो स्पष्ट किया गया है वह ध्यानमें रखने योग्य है । (११) ९ मनोनिग्रहसे परमपुण्य, (१३) मोक्ष (१५) और उस विना विद्वत्ताकी निरर्थकता (१४)
चोथे विषयका दूसरा भाग यहाँ निर्दिष्ट हुअा है। ६-मनोनिग्रहके उपाय । ___ ज्ञान, चारित्र, भावना और आत्मविचारणा (१६)
ये छ विषय भिन्न भिन्न रूपसे नोटमें भलिभाँति वर्णन किये गये हैं। सब बातका सार यह है कि मनको स्वतंत्र न छोड़देना चाहिये।
मनमेंसे संकल्प दूर करने अथवा उत्तम विचारोंको एकत्र करनेके साथ ही साथ मनको शान्त रखना चाहिये । समुद्र में जिसप्रकार बारम्बार लहरे आती रहती हैं इसीप्रकार मनमें भी तरंगें उठा करती है । इस समय मनको स्थिर रखना ही बड़ा राजयोग है । इस सम्बन्धमें नाचेकी हकीकत अपने गृहमें सुवर्णाक्षरों में लिखदेने योग्य है।