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अधिकार ] . वैराग्योपदेशाधिकारः [ ३४५ जायगा ? वहाँ क्या करने को शक्तिमान होगा ? यह कोई नही बतला सकता है; कारण कि यह बात तेरे प्राधिन न होगी, . तू परतंत्र हो जायगा । इसलिये यदि स्वतंत्र होनेकी अभिलाषा . हो तो पुरुषार्थद्वारा सब सामग्री मृत्यु के आने से पहले तैयार कर लेनी चाहिये । मृत्यु यह विभावदशा है, परन्तु विभावदशा भी स्वभावदशा हो जाती है। सुज्ञका यह कर्तव्य है कि वह मृत्युसे कभी भी न डरे, कारण कि अभी या बादमें मरना तो अवश्य है, इसीप्रकार उसको मृत्युकी इच्छा भी न रखना चाहिये । संसारसे घबराय हुए अज्ञप्राणी मनमें सोचते है कि इस जीवनसे तो यदि मृत्यु ही हो जाय तो संसारसे तो छूटकारा मिले, परन्तु वे बेचारे यह विचार नहीं करते कि मृत्युक बाद क्या पलंग बिछे हुए मिलेगें ? ( और यदि बिछे हुए पड़े है तो भी वे किसके लिये हैं ?) इसप्रकार मृत्युसे न डरना चाहिये, न इच्छा रखनी चाहिये; परन्तु उसका स्वागत करनेको हर समय तैयार रहना चाहिये । जिसप्रकार धार्मिक कार्य करके अन्य ग्रामको जाने निमित्त तैयार रहते हैं वैसे तैयार रहना चाहिये । ऐसा करनेवालेको मरते समय किसी प्रकारका कष्ट नहीं होता है, पश्चात्ताप नहीं करना पड़ता है और समाधीमें मृत्यु प्राप्तकर वे उच्च गतिको प्राप्त करते हैं ।
आत्माकी पुरुषार्थसे सिद्धि. त्वमेव मोग्धा मतिमांस्त्वमात्मन् ,
नेष्टाप्यनेष्टा सुखदुःखयोस्त्वम् । दाता च भोक्ता च तयोस्त्वमेव,
.. तच्चेष्टसे किं न यथा हिताप्तिः ॥३॥ १ मनिता इति वा पाठः ज्ञाता इत्यर्थः ।
वे किसकर हुए मिलेगे (पचार नहीं