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अधिकार ] वैराग्योपदेशाधिकारः [३९ फँस जाते हैं वे दोनों भव बिगाड़ देते हैं । इस भवमें सदैव असंतोषी रहते हैं, कारण कि प्रत्येक बात अपनी विचारी हुई नहीं होती है और शास्त्रकारका कहना है कि भविष्य भवमें अहंकारद्वारा हीनता प्राप्त होती है । योगशास्त्रमें कहा गया है कि:
जातिलाभकुलैश्वर्यबलरूपतपः श्रुतैः । कुर्वन् मदं पुनस्तानि हीनानि लभते जनः ।। ___ जाति, लाभ, कुल, ऐश्वर्य, बल, रूप, तप और ज्ञानका मद करनेसे प्राणी हीनताको प्राप्त होता है।
तुझको प्राप्त हुआ संयोग. वेत्सि स्वरूपफलसाधनबाधनानि, . धर्मस्य, तं प्रभवसि स्ववशश्च कर्तुम् । तस्मिन् यतस्व मतिमन्नधुनेत्यमुत्र, किंचित्त्वया हि नहि सेत्स्यति भोत्स्यते वा ॥६॥
"तू धर्मका स्वरूप, फल, साधन और बाधकको जानता है और तू स्वतंत्रतापूर्वक धर्म करनेको समर्थ है । इसलिये तूं अभीसे ( इस भवमें ही ) उसको करनेका प्रयास कर; क्योंकि भविष्य भवमें तू किसी भी प्रकारकी सिद्धिको प्राप्त न कर सकेगा अथवा न जान सकेगा।" वसंततिलका.
विवेचन-धर्मका स्वरूप-श्रावकधर्म अथवा साधुधर्मका
स्वरूप ।
धर्मका फल-परंपरामें मोक्ष और तात्कालिक निर्जरा अथवा पुण्यकी प्राप्ति ।
१ इस सम्बन्धकी विशेष हकीकत सातवें कषाय अधिकारमें मिलेगी और बाकी रावण, बाहुबल, स्थूलिभद्र, सनत्कुमार आदिके दृष्टांत तो प्रसिद्ध ही है।