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अधिकार] वैराग्योपदेशाधिकारः [ ३५१ संयोगोंका उचित लाभ लेनेका प्रयास कर | कहते हैं कि:- . चेतन चार गतिमें निश्चे, मोक्षद्वार यह कायारे; करत कामना सुरपन याकी, जिनको अनर्गले मायारे; पूरव पुण्य उदय करी चेतन, नीका नरभव पायारे ॥ रोहणगिरी जिम रतन खान तिम, गुण सहु यामें समायारे; महिमा मुखसे वरणत जांकी, सुरपति मन शंकायारे ॥पूरव०॥ या तन बिन तिहु काल कहो किन, साचा सुख निपजायारे; अवसर पाय न चूक चिदानंद, सतगुरु युं दरसायारे ॥पूरव०॥ धर्म करनेकी आवश्यकता, उससे होनेवाला दुःखक्षय. धर्मस्यावसरोऽस्ति पुद्गलपरावर्तेरनन्तैस्तवायातःसंप्रति जीव हे प्रसहतो दुःखान्यनन्तान्ययम्। स्वल्पाहः पुनरेष दुर्लभतमश्चास्मिन् यतस्वाहतो, धर्म कर्तुमिमं विना हि नहि ते दुःखक्षयःकर्हिचित्।७
"हे चेतन ! अनेक प्रकारसे अनेक दुःख सहन करते करते अनन्ता पुद्गलपरावर्तन करनेके पश्चात् अब तुझे यह धर्म करनेका अवसर प्राप्त हुआ है। यह भी अल्पकालके लिये है, और बार बार ऐसा अवसर प्राप्त होना अत्यन्त कठिन है, अतः धर्म करनेका प्रयास कर । इसके बिना तेरे दुःखोंका कभी भी अन्त नहीं हो सकेगा ।" शार्दूलविक्रीडित.
विवेचन-अनन्त दुःख भोगने पर अनन्त काल पश्चात् प्राकृत नियमानुसार नदीके प्रवाहमें लुढ़क लुढ़क कर गोल होनेवाले पाषाणके न्यायसे यह जीव मनुष्यभवको प्राप्त होता है । इसका प्राप्त होना कितना दुर्लभ है यह ऊपर बता दिया गया
१ अभिलाषा. २ मनुष्यकायाकी. ३ अमाप, ४ रत्नगिरि. ५ इन्द्र.
६ भूल. ७ बतलाया.
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