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अधिकार] वैराग्योपदेशाधिकार "प्रमादके परवशपनसे यह जीव सुकृत नहीं करता है जिससे मनुष्यभवसे भ्रष्ट होजाता है और दुर्गति को प्राप्त होता है और दुर्गतिमें गये पश्चात् यहां निर्दिष्ट स्वरूपानुसार वहां पश्चात्ताप करता है। हे जीव ! तूं तो यहां सुकृत कर कि जिससे तुझे परभवमें आनंदकी प्राप्ति हो।" टीका तथा सम्पूर्ण विवेचन सहित अब सब दृष्टान्त यहां दिये जाते हैं उनको ध्यान लगाकर पढ़ें । नीचे लिखे हुए उदाहरण मनुष्यजन्मकी सार्थकता और उसका लाभ न उठानेसे होनेवाली निरर्थकताकी भोर उपनय बतानेवाले हैं, यह विशेष ध्यानमें रखना चाहिये । इसका पुनरावर्तन बारंबार उपनयमें नहीं किया गया है।
१ अज दृष्टान्त. एक विशाल नगर था। उस नगरमें एक पुरवासीके यहाँ एक बकरा था । जब कोई अच्छा बड़ा पाहुना हमारे घरपर
आवेगा तब इसका मांस काम आयगा ऐसे विचारसे उस बकरेंका बहुत उत्तम प्रकारसे पालन-पोषण करने लगा; उसको प्रत्येक दिन खूब स्नान कराया जाता था, उसके शरीरपर पीला तिलक किया जाता था, उसका खूब अच्छी तरह लालन पालना होता था और इसलिये वह हरप्रकारसे सुखी प्रतीत होता था,
और अत्यन्त पुष्ट शरीरवाला बन गया था । अब उसी पुरवा. सीके घरमें एक दूसरा बछड़ा था । उस बेचारेको उसकी मां गायको दूहे जाने पश्चात् बाकीका जो अवशेष दूध रहता था उसे पीना पड़ता था और उसकी कोई सारसंभाल करनेवाला न था। बछड़े ने बकरेकी उत्तम दशा देखकर एक दिन क्रोध और ईर्षासे दूध पीनेसे इन्कार किया । उसकी माता गाय ने स्नेहसे उसको दूध न पीनेका कारण पूछा तो बछड़े ने उत्तर दिया कि 'हे माता ! इस बकरेंको तो पुत्रके सदृश मिष्टान प्राप्त