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३५२] अध्यात्मकल्पद्रुम
[दशयाँ है । यह मनुष्यभव भी अल्पकाल तक रहनेवाला है। इस युगमें मनुष्यका उत्कृष्ट १०० वर्षका आयुं गिनिये तो उसमेंसे पहिले २१ और अन्तके ३० वर्ष तो लगभग व्यर्थ ही हैं। बालपनमें अन्नता और वृद्धावस्थामें अशक्ति इन वर्षोंको व्यर्थ बनाती है। शेष मध्यके वर्षों में जो कुछ तुझसे हो सके वह कर | बार बार ऐसा संयोग प्राप्त होना दुर्लभ है। यदि इस समय भूल की तो फिर शिघ्रतया फिरसे निश्चित स्थान पर नहीं . पहुंच सकेगा । धर्मरहित जीवन व्यर्थ ही है। धर्म बिना दुःखका नाश नहीं हो सकता है और धर्मप्राप्ति बहुधा मनुष्यभव में ही होसकती है, अतएव इस अवसरसे लाभ उठानेका कहा गया है।
अनन्तकालका स्वरूप चोथे कर्मग्रन्थसे पढ़ लेवें।।
पुद्गलपरावर्तनका स्वरूप जानने योग्य है । उसके द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावसे प्रत्येकके बादर और सूक्ष्म से आठ भेद होते हैं।
औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस, भाषा, श्वासोश्वास, मन और कार्मणपनसे चोवह राजलौकके सव पुद्गल ग्रहण करे अर्थात् प्रत्येक वर्गणारूपसे प्रत्येक पुद्गल परमाणु ग्रहण करें तब द्रव्यसे एक बादर पुद्गलपरावर्तन होता है । ( कोई प्राचार्य प्रथमकी चार वर्गणा रूपसे सब पुद्गलोंको परिणमन करनेका कहते हैं ) इन्हीं पौद्गलिक परमाणुको प्रथम औदारिक वर्गणारूपसे भोगे, उसके पश्चात् अनुक्रमसे वैक्रिय वर्गणारूपसे भोगे, यावत् मनोवर्गणारूपसे भोगे; इनमें एक परमाणुको
औदारिकरूपसे भोगनेके पश्चात्, बिचमें वैक्रियादिरूपसे चाहे जिसने क्यों न भोगे किन्तु उनकी गिनती न करें। इसप्रकार
१ यह विषय अधिक पारिभाषिक ( Technical ) है, इसको ठीक ठीक समझने के लिये गुरुगमकी आवश्यकता होगी।