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अथ दशवाँ वैराग्योपदेशाधिकारः
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नोनिग्रह करनेके चार साधनों का वर्णन करने पश्चात् भावनाका तारतम्य गत अधिकारके सोलहवे
श्लोकमें कहा गया है। अब मनको भावनावासित a करनेके लिये संसार कैसा है ? उसकी स्थिति कैसी है ? इसपर विचार करनेकी आवश्यकता प्रतीत होती है। तत्त्वचिंतकों ने बिचार करके कहाँ है कि विचार करनेसे वैराग्य उत्पन्न होगा, जिससे संसारपरसे मन हट जायगा। संसारबन्धको तोड़नेवाले इस अधिकारका विषय भी, बहुत उपयोगी है और इसके श्लोकोंका यथोचित विवेचन किया गया है । खास वैराग्यका विषय इस युगमें कितना उपयोगी है इस सम्बन्धमें इस प्रन्थके उपोद्घातमें पुष्कल विवेचन किया गया है ।
मृत्युका दौर, उसपर जय और उसपर विचार. कि जीव ! मायसि हसस्ययमीहसेऽर्थान् ,
कामांश्च खेलसि तथा कुतुकैरशकः । विक्षिप्सु घोरनरकावटकोटरे त्वा
मभ्यापतल्लघु विभावय मृत्युरक्षः ॥ १ ॥ मालम्बनं तव लवादिकुठारघाता
श्छिन्दन्ति जीविततरं न हि यावदात्मन् ।