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अधिकार ] वित्सदमनाधिकार
[३२३ एकदम धनवान हो जानेकी अभिलाषासे किसी ने इस रूपयेका टीकीट लिया और मनमें विचार किया कि यदि देवयोगसे इस समयं घोड़ा लग जावे तो चार लाख रूपये मिलेंगे तो उनसे दूसरा, विवाह करूंगा, बंगला बनवाउंगा, व्योपार करूंगा, नाचरंग आनन्द उड़ाउंगा आदि आदि । ऐसे विचार करनेवालेको लहमी सुन्दरी किसप्रकार मिल सकती है ? और यदि मिल भी जावे तो वैरभावसे अर्थात् थोडेसे समयके लिये मानन्द देकर चलदे और परिणामस्वरूप दुःख ही दुःख छोड़ जाय। - जिस प्रकार चाण्डाल उत्तम पुरुषों के मन्दिर में प्रवेश नहीं कर सकता है इसीप्रकार परवश मनवाला पुरुष सद्गति मन्दिरमें प्रवेश नहीं कर सकता है । इसलिये उसको उत्तम संगती नहीं मिल सकती और बिना सत्संगतिके मन विशुद्धदशाको प्राप्त नहीं कर सकता है और ऊंची स्थिति प्राप्त करनेका तो उसे ध्यान भी नहीं आता है। - इसप्रकार परवश मनवाले प्राणीको जैसे इस भवमें संपत्ति मिलना, आनन्द मिलना दुर्लभ है उसीप्रकार उसे पर. भवमें भी सद्गति तथा प्रानन्द मिलना दुर्लभ है। :: मनोनिग्रहरहित तप, जप आदि धर्म. तपोजपाद्याः स्वफलाय धर्मा,..
न दुर्विकल्पैर्हतचेतसः स्युः। . . तल्खायपेयैः सुभृतेऽपि गेहे,
तुधातृषाभ्यां म्रियते स्वदोषात् ॥१२॥
" जिस प्राणीका चित्त दुर्विकल्पोंसे छिन्नभिन्न किया हुआ है उसको तपजप आदि धर्म अपना (आत्मिक ) फल देनेवाले नहीं हैं। इस प्रकारका प्राणी खानपानसे भरे हुए