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अधिकार ] वितदमनाधिकार
[३॥ और आत्मनिरीक्षण | शास्त्रकारका कहना है कि पात्माको निरन्तर संयमयोगों में प्रवृत रखना चाहिये, इससे अनेकों लाभ हैं। यदि इसको स्वतंत्र कर दिया जावे तो यह ऊपर बतायेनुसार भनेकों सगढ़े उपस्थित कर देता है। इसपर उमास्वातिवाचक कहते हैं कि:पैशाचिकमाख्यानं, श्रुत्वा गोपायनं च कुलवध्वाः । संयमयोगैरात्मा, निरन्तरं व्यापूतः कार्यः ।।
" पिशाचकी बात और कुलबधुका वृतान्त सुनकर प्रा. स्माको निरन्तर संयमयोगोंमे जकड़ा हुआ रखना चाहिये ।" एक वणिक ने अपना कार्य सिद्ध करने निमित्त एक पिशाचकी साधना की । मंत्रबलसे वह पिशाच सिद्ध हुआ। उसने पिशाचको.अपना कार्य बतलाया। मनसाध्य काम करनेवाले पिशाच ने अल्पकालमें ही उस कार्यको सिद्ध कर दिया। तत्पश्चात् उसने बणिकसे कहा कि अब मुझे काम बतला वरना मैं तुझे मार डालूँगा । अखण्ड उद्यमवंत व्यर्थ नहीं बैठे रहते हैं। वणिक बुद्धिमान था । उसने कहा कि यहाँ खडा खोद; खड्डा खोदने पर जब उसमें पानी पाया तो बोला कि इसमें एक बांस डाल । फिर एक छिद्रवाला कटोरा उसे देकर उसे बांस पर बंधवाया और कहा कि इस कुएमसे पानी निकाल कर कटोरा भरदे, और यह ध्यानमें रखना कि इसका छिद्र बन्द न होने पावे । जबतक मैं तुझे दूसरा काम न बताऊं तबतक तूं यह काम करता रहना ।
कुलबधुका दृष्टान्त भी इसीप्रकारका है । जब ससुरने एक दासीद्वारा सुना कि उसकी पुत्रबधुकी उसके पतिके परदेश चले जानेसे खराब होजानेकी अभिलाषा हुई है तो उसने अपनी पुत्रवधुके सिरपर अपने घरके कामका सब भार डाल दिया और उसको इतने काम में डालदी कि उसको विषय सम्बन्धी १ प्रशमरति प्रकरण-१२० वा श्लोक