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अधिकार ] .. __ चितदमनाधिकार [ ३३१
मनोनिग्रहके कुछ उपाय. स्वाध्याययोगैश्चरणक्रियासु,
व्यापारणैादशभावनाभिः । सुधीस्त्रियोगी सदसत्प्रवृत्ति
फलोपयोगैश्च मनो निरन्ध्यात् ॥ १६ ॥
" स्वाध्याय ( शास्त्रका अभ्यास ), योगवहन, चारि. प्रक्रिया में व्यापार, बारह भावनायें और मन-वचन-कायाके शुभ अशुभ प्रवृत्तिके फलके चितवनसे सुज्ञ प्राणी मनका निरोध करें।"
उपजाति. . विवेचन-शास्त्राभ्यास-स्वाध्याय के पांच भेद हैं:वांचना ( पढ़ना ), पृच्छना ( प्रश्न करना ), परावर्तना ( पुनरा. वर्तन-दोरान ( Rivision ), अनुप्रेक्षा ( मनमें चितवन ) और धर्मकथा (धर्मउपदेश)। योग अर्थात् मुलसूत्रों के अभ्यासकी योग्यता निमित क्रिया तथा तपश्चरण । यह योगद्वहन मनोनिग्रहका प्रबल साधन है और उत्तम बीज बोने निमित्त यह भूमिकाको शुद्ध करनेका मजबूत उपाय है। इन दोनों का अर्थ " स्वाध्यायमें व्यापारसे मनको एकाप करना" भी होता है। यह भी एक उत्तम अर्थ है । इसप्रकार वचनयोगपर विजय प्राप्त कर. नेकी सूचना दी, और यह भी बतलाया कि ज्ञान ही मोक्षप्राप्तिका मुख्य साधन है। ... मोक्षप्राप्तिका दूसरा साधन क्रियामार्ग है । श्रावक . योग्य देवपूजा, आवश्यक सामायिक, पौषध आदि तथा साधुको अहार, निहार, प्रतिलेखन, प्रमार्जन, कायोत्सर्ग आदिमें कायाकी शुभ प्रवृत्ति । जो क्रियामार्गकी और कटाक्ष की दृष्टिसे देखते हैं उनको विशेषतया ध्यानमें रखना चाहिये कि क्रियामार्ग भी मनो