________________
३२२) अध्यात्मकरूपठुम
[सवमा हो, शरीर तथा कान पर किड़े लगे हुए हों-ऐसे बिचारे श्वानको कहीं भी चेन नहीं पढ़ सकती है। इसीप्रकार की स्थिति अस्थिर मनवालेकी भी होती है । जिसका मन वशमैं न होगा उनको इसका बराबर अनुभव होगा । थोडा-सा पदिये:-डाफ आई, पत्र खोला, पढ़ा, उसमें लिखा है कि पुत्र एकदम सख्त बिमार हो गया है और शीघ्र बुलाता है । गाड़ी मिलनेमें दस घंटेकी देरी है तो शीघ्र ही उक्त श्वानके समान कष्ठ होने लगता है । तारपर तार दिये जाते हैं, डाक्टरकी सलाह लेनेको दोड़े जाते हैं, नैत्रोंसे आंसुओंकी धार बहती है, मनमें उकलाट उकलाट हो जाती है, भोजन अच्छा नहीं लगता है, पुत्रका अशुभ हो गया. होगा ऐसा विचार दृष्टिके सामने नाचता रहता है । यह सब किसको होता है ? परवश मनवालेको कर्मस्थिति समझनेवाले, भावीपर भरोसा रखनेवाले-मनपर अंकुश रखनेवाले प्राणीका हृदय कदापि डावाँडोल नहीं होता है । इस पर भी खूबी यह है कि उसकी लागणी कम नहीं होती है । लागणी बनी रहती है और वस्तुस्थितिका मान बराबर तादात्म्य बना रहता है । वह ट्रेनमें अवश्य जाता है, परन्तु बेचारे परवश जीवके हृदय में मामके समीप आनेपर रौद्रध्यानकी धारा प्रवाहित होती है । जब कि स्ववश मनवाला वीर कर्मविपाकके विचारोंमें लीन होकर निर्जरा करता है । यह सब अनुभवसिद्ध है, किन्तु योग्य अवसर प्राप्त होनेपर मनपर विजय प्राप्त करना ही श्रेष्ठ है, केवल बकवाद करनेसे कुछ लाभ नहीं होता है।
कुष्टके रोगीको जिसप्रकार कोई सुन्दरी नहीं वरती है उसी प्रकार परवश मनवालेको लक्ष्मी नहीं वरती है। लक्ष्मीना पीछा करनेवाले को वह नहीं मिलती है और यदि मिलती है तो वह भाप समयमें ही नष्ट होजाती है । बरबीकी लाटरी से