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अधिकार] चित्तदमनाधिकार [१५ कर लिया है तो इस बातपर उसके कहनेमात्रसे विश्वास न करलें, कारण कि मनका साधना-मनोनिग्रह करना यह तो बहुत बड़ी बात है । इसीसे स्पष्ट है कि मनोनिग्रह राजयोग है। ___. मनकी यह विलक्षणता है कि इसको जिस जिस प्रकार एक ओर आकर्षित करते हैं त्यों त्यों यह प्रथम तो विरुद्ध होता जाता है, सामना करने लगता है । ऐसा अनेकों बार अनुभव किया गया है । दृष्टान्तरूपसे यदि तुम यह विचारो कि अमुक विषयपर तो आज ध्यान ही न देना चाहिये तो विशेष करके वह विषय दिनमें दस बार मनपर आयगा । इसप्रकार मन प्रत्येक बाबतमें विरुद्ध आचरण करता है; परन्तु फिर भी यदि अभ्यास किया जाय तो यह आरम्भमें अत्यन्त भारी जानपड़ने. वाली कठिनता कम होने लगती है और शनैः शनैः इसका बिलकुल अन्त हो जाता है।
सब विषयोंका सार यह है कि मन वशीभूत होनेपर ही इस संसारदुःखसे निवृत्ति हो सकती है अर्थात् मोक्ष मिलनेका यही एक सरल मार्ग है।
मनके वशीभूत हुआ कि भटका.. लब्ध्वापि धर्म सकलं जिनोदितं, ... . सुदुर्लभं पोतनिभं विहाय च । । मनः पिशाचग्रहिलीकृतः पतन. भवाम्बुधौ नायतिहर जडो जनः ॥८॥
“ संसारसमुद्रमें भटकते हुए अत्यन्त कठिनतासे प्राप्त करने योग्य, जहाजके सदृश, तीर्थकरभाषित- धर्मरुपी जहाजको प्राप्त करने पश्चात् जो प्राणी मनपिशाचके वशीभूत
१ सहजयोग,