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कषायत्याग
अधिकार]
[ २६५ कितना आधार है और इससे कर्मबन्धनमें कितना फेर पड़ता है इसके लिये एक ही दृष्टान्त काफी होगा। लड़का उत्तम मार्गपर न चलता हो अथवा कुचाल चलता हो उसको शिक्षा देने निमित्त लाल लाल आँखे करनी पड़ती है, इसीप्रकार गालियाँ देनेवालेंपर भी लाल आँख की जाती है। किन्तु इन दोनों परके क्रोध बहुत भिन्नता है । इस भिन्नताको समझने में खूबी है, परन्तु ऐसे प्रसंगोंके सिवाय किसीभी मनुष्यप्रकृति के निमित्त बाह्य देखावसे आकर्षित होकर कितनी बार खेद पहुंचाने के प्रसंग उपस्थित होते हैं।
___ संसारके सब कार्यों में कषाय एक या दूसरी तरहसे मिला हुआ रहता है । राग और द्वेषके बिना संसारके कार्य नहीं बन सकते हैं इसलिये गुप्तरूपसे अथवा प्रगटरूपसे कषाय हो ही जाता है । कषायको समझनेकी बहुत ही आवश्यक्ता है। इसलिये उसके प्रत्येक श्लोकपर उचित विवेचन करने उपरान्त यहाँ भी प्रत्येकके लिये कुछ नवीनरूपमें विवेचन किया जाता है ।
क्रोधपर पहला तथा चोथा ये दो श्लोक हैं । शास्त्रकार भुजंगका रूप देते हैं, जिसका विवेचन हो चुका है। गोतमकुलकमें कहते हैं कि 'कोहाभिभूया न सुहं लहंति' क्रोधीको सुख नहीं मिल सकता है । भवभावनामें सूर नामक ब्राह्मणकी कथा है, उसको क्रोध करनेसे अनन्त भवमें भटकना पड़ा था। क्रोध यह द्वेष है जो विवेकहीन बना देता है। शास्त्रकार कहते हैं कि 'कोहसमो वेरिश्रो नत्थि ' क्रोधके समान कोई दुश्मन नहीं है । महात्मा, भावित्मा, अनगार और साधु भी क्रोधसे भटकने लगे हैं । क्रोध क्या क्या करता है इस विषयमें एक विद्वान् लिखता है कि- . संतापं तनुते भिनत्ति विनयं सौहार्दमुत्सादय