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अधिकार 1
शास्त्राभ्यास और वर्तन
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हो और अनुकूलता हो उस समय विशेषरूप से परीक्षा करनेका यहां निषेध नहीं किया गया है; परन्तु किसी भी तरह से आप्तके वचनानुसार अनुष्ठान करने की आवश्यकता यहाँ बताई गई है। यहां जिस पथका दिग्दर्शन कराया गया है उसमें भी ज्ञान प्राप्त करनेका निषेध नहीं किया गया है; परन्तु यह विशेषतया ध्यान में रखें कि दुर्विकल्पोंके त्याग करनेका अवश्य उपदेश किया गया है ।
शास्त्राभ्यास- उपसंहार. अधीतिमात्रेण फलन्ति नागमाः, समीहितैर्जीव सुखैर्भवान्तरे । स्वनुष्ठितैः किंतु तदीरितैः खरो,
न यत्सिताया वहनश्रमात्सुखी ॥ ९ ॥
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एक मात्र अभ्यास से ही आगम भवान्तर में अभिलक्षित सुख देकर फलदायक नहीं होते हैं, उनमें बताये शुभ अनुष्ठानोंके करने से आगम फलदायक होते हैं; जिसप्रकार मिश्री के भारको उठानेमात्र से गदहा कुछ भी सुखी नहीं हो सकता है । " वंशस्थ.
विवेचन - ' एक मात्र अभ्यास और परभवमें उससे सुख ' यह बात भ्रममूलक है । अध्ययन उच्च प्रकार के सुख प्राप्त करनेका एक साधनमात्र है, परन्तु इससे यह प्रयोजन कदापि नहीं है कि इससे उसकी प्राप्ति हो ही जायगी, कारण कि कईबार अभ्यासी होनेपर भी फलकी प्राप्ति नहीं होती और कईबार अभ्यासी नहीं होनेपर भी इच्छित फलकी प्राप्ति हो जाती है । अतः एक अभ्यासमात्रपर कुछ विशेष सुख-आत्मिक सुख प्राप्तिका साधन शास्त्रोक्त
आधार नहीं है । अनुष्ठान - चारित्र
१ नु इति वा पाठः ।