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अथाष्टमः शास्त्रगुणाधिकारः
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ब तक गत सात अधिकारों में ममत्वमोचन और
कषायत्याग तथा प्रमादत्यागका उपदेश किया FEAT गया । इस सब उपदेशका प्रभाव मनपर यदि
शास्त्राभ्यास किया जाता है तब तो कायम रहता है वरना हट जाता है। ज्ञान-समझ बिना किसी भी बस्तुका त्याग नहीं हो सकता है, यदि हो भी जाता है तो वह कायम नहीं रह सकता है और यदि थोड़ेसे समयके लिये रहता है तो फिरसे वास्तविक स्थिति हो जानेका भय लगा रहता है । शास्त्राभ्यास किस प्रकारका होना चाहिये ? उससे क्या क्या लाभ होते हैं ? उसको विशेषतया स्पष्ट किया जाता है ।
ऊपरचोटिका शास्त्राभ्यास. शिलातलाभे हृदि ते वहन्ति,
विशन्ति सिद्धान्तरसा न चान्तः । यदत्र नो जीवदयार्द्रता ते,
न भावनाङ्क्रततिश्च लभ्याः ॥१॥
" शिलाकी सपाटी समान तेरे हृदयपर होकर सिद्धान्तजल बह जाता है, परन्तु वह तेरे अन्दर प्रवेश नहीं करता है। कारण कि उसमें ( तेरे हृदयमें ) जीवदयारूप भिनाश नहीं है । इसलिये उसमें भावनारूप अंकुरोंकी श्रेणी भी नहीं हो सकती है।"
उपेंद्रवन. १ स्ते इति वा पाठः कचिल्लभ्यते ।