________________
२६८] अध्यात्मकल्पद्रुम
सप्तम कौनसा असाधारण गुण है कि जो तू मान करता है ? जरा विचार, जरा गहरा उतर, शास्त्रकार मानको *'हाथी' की उपमा देते हैं । उसपर बैठनेवाला डोला करता है और उपाध्यायजी कहते हैं कि मानत्यागका यही सरल उपाय है कि पहले जो बड़े बड़े पुरुष होगये हैं उनके दृष्टान्तोंको पढ़कर, उनका मनन कर उनके सामने अपनी लघुताका बिचार करना चाहिये । विद्वान् पुरुष कह गये हैं किबलिभ्यो बलिनः सन्ति, वादिभ्यः सन्ति वादिनः । धनिभ्यो धनिनः सन्ति, तस्मादपं त्यजेदु बुधः ॥
___ "बलवान्से भी बलवान्, वादीसे भी वादी और धनवान से भी अधिक धनवान पुरुष संसार में उपस्थित हैं; अतः बुद्धिमान पुरुषोंको अहंकार न करना चाहिये । " सेरके सिरपर सवासेर कितने ही वर्तमान कालमें विद्यमान हैं। मुझोंको इतना ही कहना काफी है। उदयरत्नजी महाराज कहते हैं कि मानसे विनयका नाश हो जाता है, विनय बिना समकितकी प्राप्ति नहीं हो सकती, समकितकी प्राप्ति बिना चारित्र ग्रहण नहीं कर सकते और चारित्र बिना संसार-बन्धनसे मोक्षकी प्राप्ति नहीं हो सकती है। इसीलिये परम्परासे मानके कारण मोक्षकी प्राप्ति नहीं होती है। यह विचारवान के लिये हस्तामलक जैसा है, सुझको चेतावनी देते हुए स्वात्महित साधनेको ये सब प्रेरणा करते हैं।
माया-इसको शास्त्रकार नागनीकी उपमा देते हैं। इसका ११ में श्लोकमें विवेचन किया गया है । यह बहुत मीठा
* हेमचन्द्राचार्य मानको वृक्ष कहते हैं, यह वटके वृक्ष के समान है यह काट डालने पर भी बढ़ता हैं, इसको नाश करनेके लिये भरपूर नदीके बहावकी आवश्यकता है, क्योंकि जब इसे समूल नष्ट कर दिया जाता है तब ही इसका फिरसे बढ़ना असंभव होता है ।