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अधिकार ]
कषायत्याग कषाय है । इसके द्वारा जीव महातीव्र पापका संचय करता है। यह दोष सामान्य पुरुषके बनिस्वित संसारकी दृष्टि में चतुर-कार्यकर्ता कहलानेवाले में विशेषतया होता है । पामलसा के समझदार पुत्रों का यह मुख्य गुण है ।" वणिक उसका नाम है जो झूठ न बोलता हो : " वि. वि० सामनभटनें कहाँ इसमें नवीनता जान पड़ती है । अभी तो वाणियावेडा-विसापणुं -ये मायाविपणाके पर्याय शब्द हैं । यह माया करनेसे मन बहुत व्याकुल रहता है । शास्त्रकार कहते हैं कि 'मायाविणो हुंति परस्स पेसा' 'मायावि पुरुष दूसरोंके सेवक होते हैं।' यह सदन अनुभवसिद्ध हैं। एक बाबतमें माया-कपट किया उसको निभाना बहुत कठिन है। फिर अनेक युक्तिये लगानी पड़ती हैं, असत्यकी परम्परा चलने लगती है फिर भी मनमें पकड़ें जानेका भय लगा रहता है । वाणियापन करनेकी माया उसी प्रकार राजखटपटकी माया-ये तो प्रगटरूपसे ही त्याज्य है । यह माया करनेवाले में बगवृत्ति, झूठा देखाव बहुत होता है, इतना ही नहीं अपितु मल्लिनाथ जीके दृष्टान्तसे जान पड़ता है कि प्रशस्त माया भी नहीं करना चाहिए । विशेषता कौम, नात या संघके नेताओं, जिनमं. दिरके ट्रस्टियों-आदि नेता पुरुषों को तो इतना सरल होना चाहिये कि दूसरे पुरुष उनका अनुकरण कर सकें । पाठकों ! क्या नात या संघकी किसी मीटींगमें आपको किसी समय प्रसंग पाया है ? वहाँ क्या होता है ? वह जातिकी तथा समस्त देशकी स्थितिको प्रगट करती है, यह दुर्गतिका चिन्ह है । वह बताती है कि आविर्तमें जबतक सरलता नहीं, स्वाण नहीं, पक्षबुद्धिका त्याग नहीं, स्वात्मभोग नहीं तब तक जापानके पड़ोसी होने का गौरव करनेकी इसे किञ्चित् मात्र भी अधिकार नहीं है। भला भाई ! तेरे सांसारिक कार्यों में माया, तेरे धार्मिक कार्यों में