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अधिकार ]
कषायत्याग है ? और फिर ऐसा कोई भी कार्य किये बिना तूं किससे स्तुतिकी अभिलाषा रखता है ? ( अथवा क्या तेरे गुण और क्या तेरा मद ! इसीप्रकार कैसा तेरा बड़प्पन और कैसा तेरा खुशामदका प्रेम ! !)
शार्दूलविक्रीडित. विवेचन-अरे जीव ! तूं लम्बा चौड़ा होकर चलता है किन्तु तूंने कौनसा ऐसा महान कार्य किया है कि जिसका तुझे अभिमान है ? तेरा जो सच्चा धन है उसको भी तूं नही पहचान सकता है । हे चेतन ! जरा विचार कर। इस जीवन में मृत्युका बड़ा भय है । क्या तूंने एक भी प्राणीको उससे बचाया है ? अरे ! तेरे स्वयंके सिरसे ही क्या उसका भय कम हो गया है ? सम्पूर्ण हिन्दुस्तानमें गरीबी बढ़ती जाती है, चार करोड़ मनुष्य दिनमें एक समय रोटी या चने खाकर पानी पी कर सो रहते हैं। उपराऊपरी दुष्कालोंमें लखों जीव बिना अन्नके मृत्युके मुखमें चले जाते हैं-ऐसा दलीहर क्या तूंने किसीका दूर किया है ? क्या दूर करनेका प्रयास भी किया है ? अथवा क्या तूंने महान क्षय, अतिसार जैसी व्याधियोंको दूर किया है ? या सोलह भयसे काँपते हुए प्राणियोंको उनमेंसे बचाया है ? इस भवमें तूने कौनसा उत्तम कार्य किया है ? क्या तूने भविष्य भवके लिये नरकको काट दिया है ? क्या तुझे इस बातकी गारंटी मिल गई है कि तूं नरकमें तो कभी नहीं जायगा ? अथवा क्या तूंने नरकका ही नाश करदिया है कि जिससे किसी भी प्राणीको वहाँ न जाना पडे ? क्या तूंने अपने कर्तव्यका पालन करके जनसमूहके या प्राणीसमूहके सुख में वृद्धि की है ? इसमें तो तूं थोड़ा अधिक कुछ भी नहीं कर सका किन्तु फिर तूं जो अहंकार अथवा अन्य पुरुषोंसे स्तुति करवाना चाहता है यह तहन