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अधिकार ]
कषायत्याग
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करनेकी आज्ञा एक वृद्ध स्त्रीको दी गई हो तो वह वृद्ध भी तो कदाच सर्व दानोंको तथा सरसोंको अलग करनेमें समर्थ हो सकती है, किन्तु जो भाग्यहीन प्राणी मनुष्य भव प्राप्त कर उसे व्यर्थ खो देते हैं वे फिर से उसको कदापि प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।
पासाः— चाणक्य नामक ब्राह्मणपुत्र नन्द राजाकी सभा में आया और आकर सिंहासनपर बैठ गया । राजा तो उस समय राजसभामें उपस्थित नहीं था, परन्तु सेवकोंने चाणक्यका तिरस्कार करके उसे वहाँसे उठा दिया । इसपर चाणक्यने वहाँ पर घोर प्रतिज्ञा की कि जो यदि में सच्चा चाणक्य हूँगा तो नन्द राजाको समूल नष्ट कर दूँगा । राज्ययोग्य कुँवरको ढूंढते ढूंढते वह एक मयूरपोषककी लड़की के समीप गया । उसको चन्द्रपान करनेका दोहद ( इच्छा ) हुआ था | चाणक्यने उत्पन्न होते ही पुत्रको उसे सौंप देनेकी उससे प्रतीक्षा कराकर युक्तिसे उसके दोहद ( इच्छा ) को पूर्ण किया । वह इस प्रकार से कि उसने एक छिद्रयुक्त तृणका गृह निर्माण कराया और एक पुरुष छिद्रको ढकने निमित्त ऊपर बैठाया गया । एक विशाल थाल में परमान्न ( क्षीर ) भर कर छिद्र के नीचे उस थालको रक्खा और पुत्रीको चन्द्रपान करने को कहा गया । श्री पान करती जाती है और छप्पर पर बैठा हुआ पुरुष छिद्रको ढ़कता जाता है । इस प्रकार उसके व्रतको पूरा किया गया । नियत समयपर उसके पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ जिसका नाम चन्द्रगुप्त रक्खा गया । चन्द्रगुप्त बाल्यकाल से ही राजा होनेके चिन्ह प्रगट करने लगा | छोटे छोटे बालकों की सभायें करके उसमें स्वयं राजाका पद ग्रहण करने लगा, न्याय करने लगा, गामप्रास भेट देने लगा, सजायें देने लगा और युद्ध भी करने लगा | चाणक्य और चन्द्रगुप्तने अनेक सिद्धियें प्राप्त करके पाटलीपुत्र