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अधिकार] कषायत्याग
[ २५१ तो मेरा त्याग कर देगा । इसलिये उसने ऐसी सलाह दी कि अपने कुटुम्बको प्रत्येक दिन एक एक चूल्हे खानेको मिले और एक मोहर दक्षिणा मिले ऐसा वरदान मांगो । ब्राह्मणने यह ही वरदान मांगा । राजाने उसकी पश्चिम बुद्धिपर खेद प्रगट किया । अब ब्राह्मणको प्रथम दिन ब्रह्मदत्तके रसोड़ेपर भोजन करना था, वहां भोजन करके उसने एक मोहर प्राप्त की । इसके पश्चात् चक्रवर्तीकी एक लाख बानवे हजार रानीयोंके वहां भोजन किया । इस प्रकार छ खण्डमें प्रत्येक घरपर भोजन करना था, परन्तु प्रथम दिनके भोजनमें जो मिठास था वह फिर नहीं आया इसलिये प्रत्येक दिन प्रथम दिनके भोजनकी अभिलाषा रखने लगा । इसलिये प्रथम श्लोकमें कहा गया है कि-" प्रसन्न मनवाले ब्रह्मदत्त चक्रवर्तीसे ब्राह्मणने प्रार्थना की कि-' मुझे सम्पूर्ण भरतक्षेत्रके प्रत्येक घर भोजन करनेका वरदान दो' इस प्रकार वरदान पाकर वह ब्राह्मण अभिलाषा करता है कि कदाचित् प्रथम दिन किया हुआ भोजन फिर मिलेगा; परन्तु जो अभागी प्राणी मनुष्य भव पाकर उसे हार जाता है वह उसे फिरसे नहीं पा सकता है।"
द्यूत-एक राजा बहुत वृद्ध हो गया था, किन्तु किसी भी तरह उसकी मृत्यु न हुई । उसका पुत्र भी बहुत बड़ा हो गया था, और प्रत्येक दिन वह अपने पिताकी मृत्युकी राह देखा करता था । वृद्ध राजाको भी राज्यसे बड़ा तीव्र मोह हो गया था इसलिये वह भी अपने पुत्रको राज्य सौंपना नहीं चाहता था । अन्तमें पुत्रकी यह अभिलाषा हुई कि पिताको मार कर भी राज्य प्राप्त करना चाहिये ! जब वृद्ध राजाको इस बातकी खबर मिली तो उसने एक युक्ति की । उसकी राज्यसभा के एकसौ आठ स्तम्भ थे और प्रत्येक स्तम्भपर एकसौ आठ