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बताया गया है । लोकस्थिति इस प्रकार है । अतः सर्व वस्तुओं पर समभाव रखना, सर्व प्राणियों पर समभाव रखमा भोर आत्मिक दशा उन्नत करने का साध्य दृष्टि में रखना चाहिये । इस प्रकार आत्म स्वरूप विचारने की कितनी आवश्यकता है, उसको हमने देख लिया है ॥ २३ ॥ अब मातापिता भादि का कैसा संबन्ध है यह
बतलाया जाता है। यथा विदां लेप्यमया न तत्त्वात्,
सुखाय मातापितृपुत्रदाराः। तथा परेऽपीह विशर्णितत्तदा.
कारमेतद्धि समं समग्रम् ॥ २४॥
"जिस प्रकार चित्र में अंकित माता, पिता, पुत्र भौर स्त्री वास्तविक रूप से समझदार आदमी को सुख नहीं देते उसी प्रकार इस संसार में रहनेवाले प्रत्यक्ष मातापितादि सुख नहीं देते । इन दोनों का भाकार नाशवंत है, अतः ये दोनों एक ही समान हैं " ॥ २४ ॥
उपजाति. भावार्थ-जिस प्रकार दूसरों की वस्तु के साथ का सम्बन्ध अस्थिर है उसी प्रकार सगास्नेहियों का सम्बन्ध भी अस्थिर है । इस विषय का फिर ममत्वमोचन अधिकार में विशेष विवेचन किया गया है । उसका कुछ पूर्व निरुपण (Anticipation) करते हुए यहाँ कहते हैं कि, हे चेतन ! तूं तेरे माता, पिता, स्त्री और पुत्र के मोह में मस्त होकर इस संसार को तेरा मान बैठा है, परन्तु तूं किसी भी प्रकार का विचार नहीं करता और