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" केलके गर्भ जैसा कोमल और अत्यन्त सुखी जीव हो उसके हर रोमरोममें तपाई हुई अग्निकी ज्वाला समान लाल लोहेकी सलाइये पिरोई हों तब उसको जो दुःख होता है उससे
आठगुना दुःख गर्भमें प्रत्येक दिन होता है और उत्पन्न होते समय तो उससे भी अनन्तगुना दुःख होता है।" ... नारकी तथा तिर्यचके दुःखोंका वर्णन ऊपर कर दिया गया है । इन दुःखोंपर बारंबार विचार किया जायगा तब विषयपर इच्छा कम होजायगी, कारण कि यह ही दुःखोंके कारण हैं । कहनेका यह तात्पर्य है कि विचार करने की अत्यन्त भावश्यकता है । प्रातःसे सायं तक बहुत घबराते रहना और अपने कार्यके बीचमें बड़े पत्थरके आजाने पर व्याकुल होकर ठहर जाना यह पुरुषार्थी पुरुषका कर्त्तव्य नहीं है। विचार कीजिये, देखिये, खोजिये और अपने अंगत स्वार्थको एक ओर रखकर ठीक ठीक निर्णय कीजिये और तदनुसार व्यवहार कीजिये । यद्यपि यहां प्रस्तुत प्रसंग विषयत्यागका ही है तिसपर भी कषायके और इसके इतना अधिक घनिष्ट सम्बन्ध है कि यहां तत्सूचनार्थ कषायशब्दका प्रयोग किया गया है । कषाय सम्बन्धी विशेष हकीकत आनेवाले प्रस्तावमें आयगी और उसका विशेष विवेचन भी उसीस्थानमें किया जायगा।
मरणभय-प्रमादत्याग. वध्यस्य चौरस्य यथा पशोर्वा,
संप्राप्यमाणस्य पदं वधस्य । शनैः शनैरेति मृतिः समीपं,
तथाखिलस्यति कथं प्रमादः ॥६॥ १ चोर इति वा पाठः