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অদ্বিদ্ধাৰ কণীয়া
[.१४१ मलीन हो जानेसे यह तात्पर्य है कि सुकृत-पुण्यधन एकत्र करनेके स्थानमें पाप अधिक एकत्र कर लिया जाता है जिससे पुण्यमें बट्टा लग जाता है । इस विषयका ऊपरके श्लोकमें काफी विवेचन हो चुका है इससे यहाँ विशेष स्पष्टीकरण करनेकी श्रावश्यकता प्रतीत नहीं होती है। - ३-यशका अपयश हो जाता है। प्राप्त किया हुआ ऐश्वर्य भी मिट्टीमें मिल जाता है । क्रोधी पुरुषके साथ अनेकों समय तक सम्बन्ध नहीं ठहर सकता है और जो उसके मित्र होते हैं वे ही उसके निन्दक हो जाते हैं। अहंकारी-अभिमानी पुरुष इतना अधिक अकड़ अकड़ कर चलता है कि उसके सम्बन्धमें आनेवाले पुरुष उसके चलनको एक बार देखकर फिर कभी उससे परिचय करना नहीं चाहते; और यदि कदाच पूर्वसंचित पुण्यके योगसे उसको धन या विद्या मिल गई हो तो उसकी अनुपस्थितिमें उसका इतना पतन कर देता है कि अझ बालक भी उसकी ओर संकेत कर करके उसकी हँसी उड़ाते रहते हैं। कपटी-मायावी पुरुषको तो अनेकों दूर ही से नमस्कार करते हैं, कारण कि वे जानते हैं कि इसके साथ अधिक सम्बन्ध होगा तो यह अवश्यमेव हानिके गड्डे में ढकेल देगा और वह कब तथा किसप्रकार ढकेलेगा इसका भान न होनेसे प्रत्येक पुरुष छोटेसे लगाकर बड़ेतक चाहे वह धनी हो वा निर्धनी, सबल या निर्बल, बच्चा या बुड्ढा, निरोगी या रोगी
और पुरुष या स्त्री सब कोई उसका सिधे या उल्टे रीतिसे अपमान करते हैं। लोभी पुरुषके प्राहक नहीं ठहरते हैं, उसके आड़. तिये, प्राहक और सेवक जानते हैं कि वह केवलमात्र अपने स्वार्थको ही देखनेवाला है, तथा अपने एक पैसेके लाभके लिये