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अधिकार ] कषायत्याग
[२२३ शूरवीर प्राणी उसको सहन करते हैं । यह दशा प्राप्त करने की
आवश्यकता है । तेरा कोई वैरी नहीं है, किये हुए कमों पर विचार करके जब जीव अपने आत्माके दोषोंको देखना सिख जाता है और क्षमा धारण कर लेता है तब जान लेना चाहिये कि उसकी उच्च वृति हो गई है। मानत्याग, क्षमाधारण और अपमान सहन इन तीन विषयोंपर यहां उपदेश किया गया है । मानके परित्याग करनेके उपरान्त अपमान सहन करनेका जो यहाँ उपदेश किया गया है उसको बहुत ध्यानमें रखना योग्य है। अपमान क्या वस्तु है ? अपमान करनेवाला कौन है ? अपमान क्या किया जा रहा है ? इसका प्रथम विचार करना चाहिये । प्रथम तो यह अवश्य होगा कि खान्दानरहित, अधम कुल में उत्पन्न होनेवाले अथवा संयोगवश अधम प्रकृतिवाले पुरुष ही अपमान करने में अग्रेसर होते हैं। सुन, कुलीन, विचारशील पुरुष कभी स्वप्नमें भी ऐसा करनेका विचार नहीं कर सकता, अतः प्रथम तो अपमान करनेवालेकी नीचताका विचार किजिये और दूसरा ऐसे प्रसंग उपस्थित होनेपर मनकी स्थिति स्थापित रखना अति कठिन है। संसारमें रसिक प्राणियोंका मान अपमानका ख्याल विचित्र प्रकारका होने के कारण उस स्थितिको स्थापित रखना लगभग अशक्य है ऐसा भी यदि कह दिया जाय तो कोई गलती न होगी, तो फिर वैसे समयमें वैसे संयोगमें बहादुरी इसीमें है कि मनको वशमें रख कर अपमानको सहन कर लेना इसीको मनपर असाधारण अधिकार तथा शूरवीरपन कहते हैं । इसी लिये प्रन्थमें भी शूरवीर शब्दका प्रयोग किया गया है । यह समझना अत्यन्त भूल है कि अपमान सहन करनेवाले निर्बल-नरम-पागल होते हैं, यह काम बहादुरोंका है, मनोबलवालोंका है, तथा प्राज्ञोंका है। ऐसी