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अधिकार
कषायत्याग . [२३१ सुख निमित्त लोभ रखता हो तो ज्ञान आदि तीन रत्नोंको प्राप्त करने निमित्त लोग कर । ये प्रशस्त लोभ हैं।
लोभके स्वरुपको जाननेकी अत्यन्त आवश्यकता है। . लोभ इतना महान विशाल समुद्र है कि उसकी भँवर में एक बार पड़े पश्चात् निकलना अत्यन्त कठिन है; क्यों कि समुद्रकी दृष्टिमर्यादा बढ़ती जाती है और धनममत्वमोचन अधिकारमें कहेअनुसार सो वालेको हजार और उनके मिलने पर उत्तरोत्तर लाख, करोड़, अरब, राज्य, स्वर्ग और इन्द्रपदवीका लोभ होता जाता है । लोभी प्राणीको किसी भी दिन सुख नही मिलता है और लोभसे अनेक हानियें होती हैं। लोभसे मन सम्पूर्ण दिन भट. कता रहता है और लोभसे दुर्घट मार्ग प्राप्त किये जाते हैं । लोभी प्राणी क्या क्या कर बैठता है यह भर्तृहरिने अपने पैराग्यशतक के ३-४-५-६-७ वे श्लोकों में स्पष्टतया लिख दिया है । सिन्दूरप्रकरमें कहते हैं कियदर्गामटवीमटन्ति विकटं कामन्ति देशान्तरम् , गाहन्ते गहनं समुद्रमतनुक्लेशां कृर्षि कुर्वते । सेवन्ते कृपणं पतिं गजघटासबद्ददुःसञ्चरम् , सन्ति प्रधनं धनान्धितधियस्तल्लोभविस्फूर्जितम् ॥ ___“धनसे अन्ध हुई हुई बुद्धिवाले पुरुष जो भयंकर अटवीमें भटकते हैं, विस्तीर्ण देशान्तरमें भ्रमण करते हैं, गहन समुद्र में अवगाहन करते हैं, अनेक कष्ट सहकर भी खेती करते हैं, कृपण शेठकी नौकरी करते हैं, जिस युद्ध में हाथियोंके मूंडका भी विजयकी अभिलाषा रख कर प्रवेश करना कठिन है उसमें प्रवेश करते हैं-यह सघ लोभकी ही चेष्टा है।" लोभके वशीभूत होकर प्राणी अनेकों कौतुक करता है, पुरुष होकर स्त्रीका भेष धारण करता है, भीख मागता है और किसी भी प्रकारका
शेठको न करते हैं, अमान्तरमें भ्रमण करुन