________________
२३२] अध्यात्मकल्पद्रम
[सप्तम अकार्य, अप्रमाणिककथन यो विश्वासभंग करनेमें किञ्चित मात्र भी नहीं हिचकचाता है। अतिशय लोभी प्राणी तो किसी भी प्रकारका कार्य कर सकता है । लोभीका मन सगपण या स्नेहके हिसाबमें नहीं होता है । श्री उमास्वातीवाचक महाराज प्रशमरतिमें कहते हैं कि " सर्वगुणविनाशनं लोभात् " लोभसे सर्व गुणोंका नाश होता है । सच्चे अनुभवियोंका कथन है कि क्रोध, मान और माया से जब कि एक एक गुणका नाश होता है तब लोभ से सब गुणोंका नाश हो जाता है, कारण कि लोभ अन्त रहित है। ___ लोमसे दुःखित अनेकों प्राणियों के अनेकों दृष्टान्त शास्त्रमें प्रसिद्ध हैं। सुभूमको छ खण्डका राज्य प्राप्त होनेपर भी लोभकी तृप्ति न हुई और फिर अधिक प्राप्त करनेका प्रयत्न किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि पूर्वपुण्यसे प्राप्त हुए छ खण्डोंको भी खोना पड़ा और तदुपरान्त अपने प्राण खो कर सातवीं नारकीमें जाना पड़ा । सीताके स्वर्णमृगपर लोभ करनेसे रामको अनेक कष्ट उठाने पड़े तथा स्वयं सीताका भी हरण हुआ । मम्मण शेठको अतुल सम्पत्तिके होने पर भी तैल के चौलौंपर निर्वाह करना पड़ा | धवल सेठने धनके लोभसे श्रीपालकी सन्ज. नताको न पहचाना और अन्त में अपने ही हाथ से मृत्युको बुला कर सातवें नरकमें गया। ऐसे ऐसे अनेकों दृष्टान्त शास्त्र में प्रसिद्ध हैं। इसके बादके इतिहासमें भी सीजर, नेपोलीयन, ऐलेक्जन्डर आदि की भी यही दशा हुई और हिन्दुस्तान में भी अलाउद्दीन आदि अनेक मुसलमान राजाओंको लोभवश अनेकों कष्ट सहने पड़े। .
लोभका दुश्मन संतोष है। संतोष हो जानेपर मनका जो बोझा उतर जाता है, जो आनन्द होता है और जो सुगमता हो