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अथ सप्तमः कषायत्यागाधिकारः
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मता प्राप्त करनेमें मुख्यतया ममत्व, विषय, और काय बाधा डालते. हैं, जिसके सम्बन्धमें ममत्व
का मस्तपना और विषयका अन्धापन हम देखही. S चुके हैं; अब कषायका कृष्टपन यहाँ बताया जाता है।
कषायमें मुख्य करके चार बातोंका समावेश होता है, क्रोध, मान, माया और लोभ । ये हरएक थोड़े और अधिक अंशोंमें होते हैं । स्थूलता और कालनिमित्तसे इनके हरएकके फिर चार चार विभाग किये गये हैं। उत्कृष्ट पन्द्रह दिन रहें वे संज्वलन, उत्कृष्ट चार महिने तक रहे वे प्रत्याख्यानी, उत्कृष्ट वर्षभर तक रहे वे 'अप्रत्याख्यानी और जो जीवनपर्यन्त रहें वे अनंतानुबंधी हैं । इस प्रकार कषायके सोलह भेद होते हैं। इस कषायको उत्पन्न करनेवाले हास्य, रति, अरति, शोक, भय, दुगन्छा और तीन वेद हैं, ये नौ · नोकषाय' के नामसे प्रसिद्ध हैं।
यहाँ विषय कषायका है। कषायका अर्थ विद्वान् इस प्रकार करते हैं कि ' कष' का अर्थ संसार और 'आय' का अर्थ जिससे लाभ हो, अर्थात् संसारमें जिससे गर्त होजावे वे कषाय कहलाते हैं । यह अर्थ कितने अंशो तक ठीक है वह निम्न लिखित श्लोकोंसे प्रगट हो जायगा। क्रोधका परिणाम-उसके निग्रह करनेकी
आवश्यकता. रे जीव ! सेहिथ सहिष्यास च व्यथास्ता