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मानसिक ऊच्च आनन्दका उपभोग करते हैं । भर्तृहरिने क्या ही उत्तम कहा है कि:- स्वयं त्यक्ता ह्येते शमसुखमनन्तं विदधते' जिन्होंने विषयको स्वयं ही छोड़ दिया है वे ही अनन्तसुखको प्राप्त होते हैं; परन्तु वृद्धावस्थासे शरीरके अशक्त होजाने पर यदि वह हमको छोड़ जाता है तो हमको अत्यन्त मानसिक क्षति उठानी पड़ती है। श्लोकके चोथे पदमें जो कहा गया है उसका यही प्रयोजन है, इसलिये सब प्राणियों को विषयत्याग करने की अभिलाषा रखते हुए उसके लिये प्रयास करना चाहिये । विषयसेवनमें इन उपरोक्त चार चिजोंका सामना करना पड़ता है इसमें कुछ अतिशयोक्ति नहीं है, किन्तु यदि इनसे मुक्त होना चाहें तो विषयका त्याग करना भी उतना कठिन नहीं है जितनी की हमारी धारणा है ।
तूं क्यों विषयों में आसक्त होता है ? मृतः किमुप्रेतपतिर्दुरामया,
गताः क्षयं किं नरकाश्च मुद्रिताः । ध्रुवाः किमायुर्धनदेहबंधवः,
सकौतुको यद्विषयर्विमुह्यसि ॥ ८ ॥
"क्या जम (यम) मर गया है ? क्या दुनियाँकी भनेकों व्याधियाँ नष्ट होगई हैं ? क्या नरकद्वार बन्द हो गये हैं ? क्या आयुष्य, पैसा, शरीर और सगेसम्बन्धी सदैवके लिये अमर हो गये हैं ? कि जो तूं आश्चर्य-हर्षसहित विषयोंकी ओर विशेषरूपसे आकर्षित होता है ?" वंशस्थवृत.
विवेचनः-जिसको मरनेका भय न हो वह यदि विषय