________________
की हानि होती है; · कारण कि शोक रोग का मूल है और संसार को विस्तृत करनेवाले दो मल्लों में से राग एक है। निनके मरण के लिये शोक किया जाता है उन्होंने ही इस जीव को अनेक बार अनन्त भवभ्रमण में मारा है और इसने भी उनकों कई बार मारा है और ऐसा ही फिर भी होनेवाली है तो फिर किस के लिये रोना ? वास्तव में तो जो समय प्रमाद में व्यतीत हुआ हो और जितना भात्महित न साधा गया हो उसके लिये अपने आप पर पश्चाताप करना अथवा निष्फल काल निर्गमन और प्रमाद के लिये शोक करना उचित है । ऐसी जागृत दशा व्यवहार के प्रत्येक कार्य में रखने की टेव पड़ेगी और साध्यदृष्टि निरन्तर लक्ष्य में रहेगी तब ही अत्यन्त आनन्द की प्राप्ति हो सकेगी । उस समय केवल मानसिक आनन्द होने सिवाय शोक का स्थान ही न रहेगा, कारण कि उस समय शोक का मूल क्या है और वह कैसा है उसका सच्चा सच्चा भान हो जाता है । ।
हकीकत इसप्रकार है तो फिर रिवाज के लिये बैठना, झूठा शोक प्रगट करना, मन में दुख हो या न हो तो भी दिखानेमात्र को रो-पीट कर दूसरों को धोखा देना, ऐहिक स्वार्थ साधने की बुद्धि के मार्ग में रोड़ा अटकाना महानिंद्य कर्म है, असत्य व्यवहार है और केलवणी की अनुपस्थिति प्रगट करने. वाला तथा बाह्य आडम्बर का विचित्र दर्शन है । यह दंग धर्मविरुद्ध है. कारण कि इस में मायामिश्रित शोक का आविर्भाव है और शुद्ध व्यवहार के स्वरूप की समझनेवाले धर्मिष्ट गृहस्थ
६ राग-द्वेष-मोह के पुत्र और बड़े सैनिक । ..