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भी न कर, कारण कि संसार में भ्रमण करनेवाले इस जीव के लिये ये पुत्र और स्त्री आदि उलटे दृढ़ बंधनरूप हैं।' मोह का ऐसा स्वरूप समझ कर जैसे बने तैसे मोह को कम करने और संसार पर उदासीन भाव रखने का यहा उपदेश किया गया है शृंगार के विषय में गले आलिंगन या बंधन करना यह उत्कृष्ट रस शृंगार के कवि गिनते हैं, ये वास्तव में क्या हैं ? इसका सच्चा भानं कविने यहां कराया है। हीनोपमान होजाय इसका पूरा पूरा ध्यान रखते हुए यथास्थित स्वरूप का दिग्दर्शन कराया है। . स्त्रियों में होनेवाली अरमणीयता चर्मास्थिमज्जांत्रवसास्त्रमांसामेध्या.
यशुध्यस्थिरपुंद्गलानाम् । स्त्रीदेहपिंडाकृतिसंस्थितेषु, । स्कंधेषु किं पश्यति रम्यमात्मन् १॥२॥
“ स्त्री के शरीर पिण्ड की आकृति में रहनेवाले चमड़ी, हड्डी, चरबी, अन्तड़ी, मेद, लोहू (सधिर), मांस, विष्टा भादि अपवित्र और अस्थिर पुद्गलों के समूह में हे मात्मन् ! तूं क्या सुन्दरता देखता है ?"
इंद्रवज दूसरी और तीसरी गाथा का विशेष विवेचन एक साथ नीचे किया गया है। अपवित्र पदार्थों की दुर्गंध । स्त्री शरीर का सम्बन्ध.