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अतः यह बताने की आवश्यकता है कि संतोष और पुरुषार्थमें विरोध नहीं है; परन्तु दुर्ध्यान होता है । पैसोंके लिये जापमाना फिरावे, तथा रातदिन पैसों पैसोंका ही ध्यान बना रहे ऐसी स्थिति नहीं होने देनी चाहिये । “ You may aspire, but don't be dissatisfied with your present lot' तुम बड़े बनने की आशा-अभिलाषा रक्खो, किन्तु तुम्हारी वर्तमान दशासे असंतोषी न बनो।
धन एकत्र करनेके पश्चात् क्या करना चाहिये इसके लिये भी ग्रन्थकारने विवेचन कर दिया है । धन एकत्र करते समय कैसे संस्कार होते हैं उसपर जो ध्यानदिया जावे तो उपदेश लगे बिना नहीं रह सकता है । पैसोंके लिये परदेशगमन, नीचसेवा, सर्दी, गर्मी और तीव्र वचन सहन करने पड़ते हैं, पैसोंके लिये चापलूसी करनी पड़ती है, पैसोंके लिये खटपट करनी पड़ती है और पैसोंके लिये अनेक विडम्बना सहन करनी पड़ती है। जिस कदर्थनाके एक अंश मात्र सहन करनेसे मुनिमार्गमें मोक्ष मिल सकता हैं, वैसी कदर्थना पैसों के लिये अनादि मोहमदिरामें चकचूर भये हुए जीव करते हैं; परन्तु विचारते नहीं कि यह सब किसलिये किया जारहा है ? मूदमवस्थामें इधर उधर निरर्थक भटकते रहते हैं । सिंदूरप्रकरमें कहते हैं कि:-धनसे विवेकहीन हुए हुए प्राणी भयं. कर बनमें भ्रमण करते हैं, विकट दूर देशान्तरमें फिरते हैं, गहन समुद्रका उल्लंघन करते हैं, बहुत दुःखवाली खेती करते हैं, कृपण पतिकी सेवा करते हैं और हस्तियोंके संघटसे अप्रवेश्य संग्राम में जाकर प्राण न्यौच्छावर करते हैं। यह सब लोभवश हैं।