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सुख कहाँ है १ पैसेदारों की हवेलियोंमें, राजाके महल में, चक्रवर्तीके निवासस्थानमें, इन्द्रके इन्द्रासनमें या दो घोडोंकी गापी १ विचार किजिये और देखिये तो जानपड़ेगा कि बाहरके आडम्बरोंमें सुख नहीं है । सुखी दिखाई देनेवाले पुरुषोंके हृदयमें भी ज्वाला भभकती रहती है, उनके घरों में अनेक खटपट होती है और मनमें तो युद्ध होता ही रहता है । सुख-संतोष तथा वर्तमान स्थितिमें मानन्द अनुभव करनेमें ही है, धन अस्थिर है, यह किसीका न तो हुआ है न होगा ही। प्रायः विद्या तथा धनमें वैर है। बिना मानके सुख नहीं मिल सकता और पैसेवालों को सुखी मानना महामूर्खता है।
___ अनेक दोषोंसे भरपूर, धवलशेठ, अम्मणशेठ, सुभूम चक्री आदिको नरकमें डालनेवाली, एकान्त उपाधिसे भरपूर, मनकी अशान्तिका प्रबल साधन, अनेक दुःखोंकी बारीस करनेवाली, विद्वानों द्वारा अंधेका उपनाम दिलानेवाली लक्ष्मीके सुखको भोगनेवाले धनिकोंको वह सुख मुबारक हो ! वर्तमान समयके विचित्र रंगसे भरपूर जीवन और विशेषतया सख्त प्रवृत्तिके मध्यबिन्दु बड़े शहरोंके सुखी दिखाई देनेवाले पुरुषों को देखकर किचित्मात्र भी आश्चर्य नहीं करना चाहिय, किञ्चित्मात्र भी शोक नहीं करना चाहिये, और न उनकों सुखी ही मानना चाहिये; कारण कि उनके विशेष समीपके सम्बन्धी यह भलीभाति जानते है कि वास्तवमें वे बिलकुल सुखी नहीं हैं । अपना सुख अपना पास ही है और हमको तो परमानंद पद प्राप्त करने की इच्छासे वर्तमान स्थितिमें संतोष रखकर शुद्धवृत्ति धारण करके, धर्ममय जीवन बनानेका उद्देश रखते