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ओर देखना, कटाक्ष करना ये चचुरिन्द्रियके विषय हैं और वैश्या तथा गवैया आदिके गायन, वायलीन, हारमोनियम, सितार वा बेण्ड आदि वाजित्रों के मधुरस्वर श्रवण करना से श्रोत्रेन्द्रियके विषय हैं । ये पांच इन्द्रियाँ जीवको बहुत दुःख देती हैं । इस अधिकार में इसके सम्बन्धका ही विवेचन किया गया है । प्रमाद पांच प्रकारके हैं:
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मज्जं विसयकसाया, निद्दा विकहा य पंचमी भणिया । ए ए पंच पमाया, जीवं पाडंति संसारे ॥
१ मद ( आठ प्रकार के हैं:-तप, श्रुत, बल, ऐश्वर्य, जाति कुल, लाभ, रूप )
२ विषय ( पांच इन्द्रियोंके २३ विषय हैं )
३ कषाय ( क्रोध, मान, माया और लोभ । ये प्रत्येक चार-चार प्रकार के होने से सोलह भेद होते हैं )
४ विकथा ( राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा और भोजनकथा )
५ निद्रा ( निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानर्द्धि ) |
अथवा प्रमाद आठ प्रकारके हैं ।
पमा य मुणिंदेहिं, भणिओ अभेयत्र । अन्नाणं संसओ चेव, मिच्छानाणं तहेव य ॥ रागो दोसो महभंसो, धम्मंमि य श्रणायरो | जोगाएं दुप्पणिहाणं, अट्टहा वज्जियब्बओ ॥ .