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. १७१ (आप्टे डिक्शनेरी ) । इस हकीकतसे विचार करें कि शरीर का मोह कितना हानिकारक है'।
शरीररूपी काराग्रहसे छूटनेका उपदेश. कारागृहाइहुविधाशुचितादिदुःखा
निर्गन्तुमिच्छति जडोऽपि हि तद्विभिद्य । क्षिप्तस्ततोऽधिकतरे वपुषि स्वकर्म
वातेन तदृढयितुं यतसे किमात्मन् ? ॥२॥
" मूर्ख प्राणी होते है वे भी अनेक अशुचि आदि दुःखोसे भरे हुए बन्दीखानेको तोड़कर बहार भगजानेकी अभिलाषा करते हैं। तेरे खुदके कर्मोद्वारा तूं उससे भी अधिक सख्त शरीररूपी बन्धीखानेमें डाला गया है, लेकिन फिर भी तूं तो उस बन्दीखानेको और भी अधिक मजबूत करनेका प्रयत्न करता है । " वसंततिलका
विवेचन:-कैदखानेमें क्षुधा, तृषा, गंदगी, कठिन काम आदि अनेकों दुःखोंको सहन करने पड़ते है, इससे उसमें रहनेवाले प्राणीकी यह अभिलाषा होती है कि वह कब उससे छूटकारा पावे ? कोई अवसर मिले तो उसको तोड़कर भग जावे । शरीररूप कैदखाना तो बहुतसी अशुचिसे भरपूर है, फिर भी उसमेंसे छूटकारा पानेका प्रयत्न करनेके स्थानमें
१ इस श्लोकके चतुर्थपादमें ‘जगति के बदले किसी स्थानमें 'जगंति' ऐसा पाठ है. इस का अर्थ — जगत के प्राणियोंको' ऐसा हो सकता है; परन्तु प्रथम पाठ अधिक समीचीन प्रतीत होता है ।