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समीक्षसे नो नरकेषु तेषु,
मोहोद्भवा भाविकदर्थनास्ताः ॥६॥
" विकसित नयनवाली और सुन्दर मुखवाली स्त्रियों के नेत्र, मुख आदि को देखकर तूं मोह करता है, परन्तु उनके मोहसे भविष्य में उत्पन्न होनेवाली नरककी पीड़ाओं का विचार तूं क्यों नहीं करता ?”
उपजाति.
विवेचन-दूध पीने को लालायित बिल्ली दूध ही को देखती है, लेकिन शिरपर लकड़ी लिये खड़े हुए पुरुष को नहीं देखती; भूठा दस्तावेज बनानेवाला तात्कालिक लाभ को ही देखता है लेकिन न्यायासन से होनेवाले न्याय के परिणाम स्वरूप जेलयातना की ओर दृष्टि नहीं दौड़ाता है; इसीप्रकार मोहांध प्राणी स्त्रीके सुन्दर अवयव और रेशमी साड़ी को ही देखते हैं, परन्तु उससे इस भव और परभव में होनेवाली पीडाशों का विचार नहीं करते है ! नरक के दुःखों का बिचार करना भी कठिन है । उसकी शीत, उष्ण आदि दस प्रकारकी वेदनाओं का स्वरूप शास्त्र में से पढ़ते समय कड़े से कड़े हृदयवाला पुरुष भी काँप उठता है। क्षेत्रवेदना के उपरान्त परमाधामीकृत बेदना भी बहुत कठिन होती है । इसके भी उपरान्त तीसरी नारकी जीव परस्पर अनेक उपघात करते हैं, वे अन्योन्यकृत वेदना भी बहुत कठोर है । इसप्रकार क्षणमात्र के सुखके लिये दीर्घकाल के महादुःख को भोगना पड़ता है, अतः हे भाई ! विचार कर । ( इसी विषय पर सम्पूर्ण शृंगार वैराग्यतरंगिणी नामक ग्रन्थ लिखा हुआ है, जिसको पढ़ना अत्यावश्यक है।)