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क्षेत्र, काल, भावका विचार करके योग्य क्षेत्रमें धनका व्यय करना चाहिये ।
- इसप्रकार धनममत्वमोचन द्वार पूर्ण हुआ। यह धन का विषय बहुत उपयोगी है, इसके समझानेकी आवश्यकता प्रतित नहीं होती कारण कि यह सब कोई जानते हैं । ग्रन्थकर्ता के अनुसार इस विषयके दो भाग किये जासकते हैं । धन पर ममत्व नहीं रखनेके कारण प्रारम्भमें एक एक कहके ढंगसर बताये गये हैं । यहाँ जो कारण बताये गये है यदि प्राणी उन पर विचार करे तो उसके नेत्र बिना खुले नहीं रह सकते । चोथे श्लोक में जो तत्त्वज्ञान बताया है वह बहुत उपयोगी है
और तीसरे श्लोकमें कहाँ है कि : ममत्वमात्रेण मन:प्रसादसुखम् ' यह वाक्य बहुत रहस्यमय है । सारांशमें कहाँ जाय ४. तो प्रथमके चारों श्लोकोमें जो कारण बताये गये हैं वे बहुत विचारने योग्य, मनन करने योग्य और अनुकरण करने योग्य हैं। विषयके दूसरे भागोंमें उपार्जित धनके योग्य मार्गमें व्यय करनेका उपदेश किया गया है, तथा उस सम्बन्धका कितना ही उपयोगी ज्ञान दिया गया है । मुख्य उपदेश तथा उद्देश धनत्यागका ही हैं, परन्तु कदाच ममत्व न छुट सके तो फिर उसको शुभमार्गमें व्यय करनेका उपदेश किया गया है ।
बन्धुओं ! इस संसारमें अनेक प्रकारसे फँसानेवाली दो ही मुख्य वस्तुयें हैं-एक स्त्री और दूसरा धन । इन पर राग इसप्रकारका होता है कि उसका पूरापूरा वास्तविक वर्णन तो ज्ञानी पुरुष भी करनेमें असमर्थ हैं । इसमें धनका स्नेह