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कठिन नहीं हैं । धनसे कुछ भी लाभ नहीं हैं । न जाने किस अनादि प्रवाहसे यह जीव लोभके वशीभूत होता ही जाता . है, और पैसोंको त्यागनेके समय विचार करने लगता है कि मैं इनके बिना कैसे रह सकूँगा ? परन्तु हे भाइयों ! ऊपर लिखे और अन्य अनेकों दोषोंके कारण पैसेका परित्याग कर देना ही अत्युत्तम है । पैसोंका परित्याग करदेना उतना कठिन नहीं है जितनी कि तुम्हारी धारणा है। किसी भी वस्तु के वियोग होने पर ऐसा जान पड़ता है कि मानों उसके बिना कुछ भी काम न चलेगा, परन्तु वास्तवमें उसके बिना भी सब काम चलता ही है । यही दशा पैसेकी भी समझना चाहिये ।
सात क्षेत्रमें धनव्यय करनेका उपदेश. क्षेत्रेषु नो वपसि यत्सदपि स्वमेत
द्यातासि तत्परभवे किमिदं गृहीत्वा ?। तस्यार्जनादिजनिताघचयार्जितात्ते,
भावी कथं नरकदुःखभराच्च मोक्षः ? ॥७॥
" तेरे पास द्रव्य है फिर भी तूं ( सात ) क्षेत्र में व्यय नहीं करता है, क्या तूं परभवमें धनको तेरे साथ ले जायगा ? यह विचार कर कि पैसे उपार्जन करनेसे होनेवाले पापसमूहके नारकीय दुःखोंसे तेरा मोच (छुटकारा) कैसे होगा?"
वसंततिलका विवेचनः-उपार्जित द्रव्य.परभवमें साथ नहीं जाता है; अपितु उसके उपार्जन करनेमें, एकत्र करनेमें और उसके व्यय करनेमें अथवा नाश होने में अनेक दुःखपरंपरा होती