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१५३ जा सकता है। जैसे पहले करांची जावे वहांसे जाफराबाद होकर गोघे पाकर भगवाडांडी जाकर सुरत जावे; इसप्रकार मोक्षमार्ग भी कितनों ही को सीधा प्राप्त हो सकता है और कितने ही व्यर्थ चक्कर लगाते रहते हैं। द्रव्यस्तव यह प्रयाण तो मोक्षमार्ग की ओर ही है, इसका रास्ता बराबर दिशा में है, लेकिन एक मात्र यह लम्बा मार्ग है; परन्तु विमार्ग या अपमार्ग नहीं हैं। द्रव्यस्तवको नरम बनानेकी कितनी ही बार विचारना देखी जाती है और विशेषतया कुछ लज्जासे और कुछ अवकाशके अभाव से इस कालमें यह वृति विशेष दिखाई देती है जबकि पुराने समयमें वह ही वृति अध्यात्मियोंद्वारा बाहर आती थी; अतः यहाँ उसकी वस्तुस्वरूप क्या है इसको समझानेका प्रयास किया गया है।
कितने ही पुरुष अन्याय अथवा अप्रमाणिकपनसें द्रव्य उपार्जन करते समय विचार करते हैं कि पैसे उपार्जन करके धर्ममार्गमें इसका व्यय करेंगे। यह विचार नितान्त अनुचित हैं और शास्त्रकार ऐसे निमित्तसे धन एकत्र करनेसे मना करते हैं। महा आरम्भ कर्मादान और क्षुद्र व्यापार करनेसे जो धन उपार्जन होगा उसको धर्ममार्ग में व्यय करुंगा ऐसा कितने ही प्राणी विचार करते हैं । यह जैन शास्त्र के रहस्य को जाननेवाले को नितान्त विपरीत जान पड़ता है । इस श्लोक का मुख्य उद्देश्य द्रव्यस्तव की अपेक्षायें भावस्तव की कितनी मुख्यता है. यह बताना है; और यह उपदेश श्रावकों को सम्बोधित करके किया गया है। द्रव्यस्तव साधनेके लिये धनोपार्जन करके संसार में पड़े रहने, अथवा भावस्तवका आदर नहीं