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साथ कितना अन्याय होता है यह तो बहुत विचार करने योग्य है। इसीप्रकार की स्थिति में अपनेपन को भूल कर विचार करने से शिघ्र सब ध्यान में आसकता हैं । साधारण व्यवहार के नियम से, प्रतिष्ठित गृहस्थी के कर्त्तव्य के तोर पर ही परस्त्री सम्बन्ध का विचार तो करना ही चाहिये । अच्छे दिखलाई देनेवाले प्रतिष्ठित पुरुष भी जब इस कूद में पड़ते हैं तब प्रतिष्ठा, धन और शरीर की हानि करते हैं और उनको संसार की अनेक अापत्तिये आकार घेर लेती हैं । स्वस्त्री सम्बन्ध करते समय भी समय-संयोग का विचार करना तथा जहाँ तक हो सके तहाँ तक संकोच करना उचित है । मन में तो सदैव विषय. त्याग की ही इच्छा रक्खनी चाहिये ।
इस उपयोगी विषयपर शास्त्र के अनेकों ग्रन्थों में लेख हैं । इसके लिये इन्द्रियपराजयशतक, उपदेशमाला, शृंगारवैराग्य. तरंगिणी, भव-भावना, पुष्पमाला आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय करें । वर्तमान समय के बाहरी दिखावे में न फंस कर तथा इस जीवन का उच्च उद्देश्य जानकर तथा यह जीवन संसारवृद्धि तथा ऐशआराम के लिये नहीं हैं ऐसी साध्य दृष्टि रखकर जो यदि योग्य प्रवृति की जायगी तो उसका झेर अवश्य उतर जायगा । ॥ इति सविवरणः स्त्रीममत्वमोचननामा द्वितीयोऽ.
धिकारः॥
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