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१४१ विवेचनः-एक ही स्थान में संयोग के परिणामरूप पुत्रपुत्री और बेइन्द्रिय जीव उत्पन्न होते हैं, लेकिन एक पर प्रीति होती है और दूसरे से घृणा होती है-यह प्रेम की विधित्रता है । सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति धर्मशास्त्र और कामशास्त्र में प्रसिद्ध है । स्थान, समय और संयोग में एकाकार वृत्ति है, फिर भी मन के द्विधाभाव से प्रेम में कैसी विचित्रता है, यह देखने योग्य है । यह उपदेश आक्षेप से किया हुआ है और यद्यपि शब्द कर्कश हैं फिर भी उपदेश के गर्भ में जो उच्च भाव है वह ध्यान देने योग्य है । • अपत्यपर स्नेहबद्ध न होने के तीन कारण. त्राणाशक्तेरापदि सम्बन्धान
न्त्यतो मिथोंऽगवताम् । सन्देहाच्चोपकृते
पित्येषु स्निहो जीव ॥ ४॥ "आपात में पालन करने की शक्ति होने से, प्राणीयों का प्रत्येक प्रकार, का परस्पर सम्बन्ध अनंतवार हुआ हुश्रा होने से और उपकार का बदला मिलने का सन्देह होने से हे जीव ! तूं पुत्रपुत्रादि पर स्नेह मत कर"।
आर्या.
विशेषार्थः-पुत्रपुञ्यादि के स्नेह में आसक्त न होने के तीन कारण बतलाये हैं:
( १ ) दुःखो से रक्षा करने में वे शक्तिहीन हैं। कर्म