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है और किसी समय वह महा निंद्य कुरूप धारण करता है। इसीप्रकार अचेतन पदार्थ भी अच्छे और बुरे रूप धारण करते हैं । इसका सुन्दर दृष्टान्त सुबुद्धि नामक प्रधान से खाई के जल से बनाये हुए निर्मल रत्न में मिलता है।
___ एक दिन एक राजा और उसका सुबुद्धि नामक प्रधान एक अत्यन्त दुगंधित खाई के समीप होकर निकले । राजा को यह दुर्गधित खाई अच्छी नहीं लगी, अतः उसने उसकी ओर से मुँह फिराया तथा प्रधान से इसके विषय में वार्तालाप भी किया। प्रधानने उत्तर दिया कि हे महाराज ! पुद्गल का स्वभाव ही सुगंधी तथा दुगंधी देने का है, कारण कि प्रत्येक प्रमाणु में दो में से एक में गंध हुआ ही करती है। राजा को यह बात पसन्द नहीं आई किन्तु उस समय दोनों चुप हो गये । इसके पश्चात् प्रधानने उस खाई में से कुछ पानी भरा मंगवाया
और उस पानी को शुद्ध करवाया। फिर उसमें कतकचूर्णादि डालकर उसको दुर्गधी रहित बनाया और कपूरप्रमुख से उसमें सुगंधी पैदा की। फिर किसी समय जब राजाने उस पानी को पीते हुए उसकी बड़ी प्रशंसा की तो प्रधानने उसकी सब हकीकत निवेदन की । इसप्रकार राजा को पुद्गल के विचित्र धर्मकी प्रतीति हुई।
जिन पदार्थों पर हम प्रीति करें वे पदार्थ जो सदैव एकसी स्थिति में रहनेवाले हों तो वे पदार्थ अवश्य प्रीति करने योग्य हैं । घर का सुरम्य फरनीचर अदृश होजायगा, नष्ट होजायगा, टूट जायगा, सुन्दर शरीर मिट्टी में मील जायगा, उसके अन्दर रहनेवाला आत्मा भी पर्याय से अनेक भावों को प्राप्त होगा; तब फिर उसमें प्रेम किस प्रकार करना ? किस पर करना क्यों