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नहीं आते हैं । इसीप्रकार जिन पदार्थोंपर वह स्नेह करता है वे भी अपने रूप में स्थिर नहीं रहती, बारंबार बदलती रहती हैं और नाशवंत हैं । ऐसे पदार्थों पर प्रीति करके जो आत्म अवनति की जाती है उसके स्थान में यदि स्वार्थसाधन किया जाय तो अत्यन्त कल्याण के होने की सम्भावना है ।
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इसप्रकार समतप्राप्ति के अनेक साधन इस अधिकार में बताये गये हैं । प्रत्येक वस्तु के निरीक्षण करने की आदत... डालने की आवश्यकता है । वस्तु को देखकर उसके बाझ निरीक्षणमात्र से कुछ लाभ नहीं है; परन्तु वह क्या है ? कहां से आई है ? उसका हमारे साथ क्या संबंध है ? कितना है ? कहां तर्क का है ? आदि के विचार करने से समता की प्राप्ति होती है, कारण कि इस प्रणालीद्वारा कार्यकर्ता को आत्मजागृति प्राप्त होती है | श्रात्म-निरीक्षण ( Self Examination) का अर्चित्य प्रभाव बहुत लक्ष्य में रखने योग्य है । इस काल में ऊपर ऊपर से बांचजाने से अनेकों विषयों में गहरे विचार करने की टेव नहीं पड़ती जिससे विशेष लाभकारी विषय भी थोड़ासा आनन्द दीखाकर गायब होजाता है, परन्तु ऐसे सामान्य विचार को छोड़कर जब आत्म-निरीक्षण करने की अभिलाषा प्रबल होती है तब आत्मतत्त्वगवेषणा होती है और साध्यबिन्दु समीप आ जाता है । वस्तु के विचारने की टेव पड़ जाने पर मन की चंचलता मिट जाती है, वह विशेष रूप से स्थिर होता जाता है और ऐसा बारंबार होने पर अनुभव की जागृति होती है, और एक बार अनुभवज्ञान प्राप्त होजाने पर फिर विशेष कार्य करने की आवश्यक्ता नहीं रहती है । बहुत पढ़ने के स्थान में ध्यानपूर्वक थोड़े से ग्रन्थ पढ़ना, पढ़ कर विचार करना, विचार
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