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होकर कषायों का शिकार बन जाता है तो फिर यदि मृत्यु का डर न होने पर तो यह जीव भूमि पर भी पैर न रक्खे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । अतः मरते समय कोई पदार्थ संग नहीं आता इस विचार को निरन्तर दृष्टि समीप रखना उचित है। इसमें भी दीनता न बतावे परन्तु दृढ़तापूर्वक एकत्व भाव रखे । शासकार इस निमित्त अनेक प्रकार के उपदेश करते हैं। एक स्थान पर कहते हैं कि:चेतोहरा युवतयः स्वजनोऽनुकूला,
सांधवाः प्रणयगर्भागरश्च भृत्याः। बलूगंतिदन्तिनिवहास्तरलास्तुरंगार,
संमीलने नयनयोर्न हि किंचिदस्ति ॥
' चित्तको आकर्षण करनेवाली सुन्दर युवतियाँ, अनुकूल सगे-सम्बन्धी, प्रतिष्ठित भाई, सभ्यतापूर्वक बोलनेवाले सेवक, हाथियों का समूह और चपल घोड़ें आदि सब हों; परन्तु
आँखों के बन्द हो जाने पर ये सब अदृश्य हो जाते हैं।' व्यवहार में भी कहा जाता है कि:
जेनी फुके पर्वत फाटे, आभ उँडलमा भरता।
जेनी चाले धरणी धूजे, ते नर दीठा मरता ॥ । ऐसी स्थिति है, अतः मृत्यु को सदैव दृष्टि समीप रख कर उसके स्वागत के लिये हर समय तैयार रहना चाहिये । कितने ही बड़े बड़े चक्रवर्ती राजालोग छ खण्ड पृथ्वी, हजारों रानियों तथा असीम ऋद्धि को यहीं छोड़ गये, उनके साथ में कोई नहीं गया, कुछ भी नहीं गया, यह बात कोई नई नहीं है। अपितु माता-पिता, स्त्री-पुत्र आदि का प्रेम भी जबतक स्वार्थ रहता