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और ये मेरे सगे-स्नेही हैं, यह मेरा धन है-इस प्रकार तुझे ममत्व हो गया है; परन्तु इसीसे तूं यम के वश में होगा, इसको तूं देखता भी नहीं है " ॥ २८॥ स्वागता
भावार्थ-इस संसार के सब सम्बन्ध स्वप्नवत् हैं, इस के दृष्टान्तरूप यहा उल्लेख करते हैं । इस जीव को स्त्री, कुटुम्ब, पुत्र, सगे-सम्बन्धियों और धन पर इतनी प्रगाढ़ ममता होती है कि वह इस जीव को बहुत दुःख देती है, फिर भी यह जीव नहीं सोचता कि इस संसार में दुःख देनेवाली ममता है वरन् यह तो इसीमें सुख समझे हुए है। इसीलिये शास्त्रकार ममता की मदिरा ( दारु ) से उपमा देते हैं । जिस प्रकार मदिरापान करनेवाले को सदसद्विवेक नहीं रहता, अपशब्द बोल दिये जाते हैं, वस्तुतत्त्व का भान नहीं रहता, वैसी ही स्थिति ममता के वश में हुये प्राणी की भी होती है । ममत्व के वशीभूत हुये दुनियाँ में अनेकों बड़े बड़े भाग्यशाली हैं, कि जिनका व्यवहार देखें तो मालूम होगा कि उनको कृत्याकृत्य का भान नहीं रहता है, नहीं करने योग्य कार्य करते हैं, अस्थिर पदार्थों पर प्रेम रखते हैं और स्थिर पदार्थों को छोड़ देते हैं । मोह में मस्त हुये प्राणी कैसे कैसे नाच नाचते हैं यह देखने योग्य है, इसके लिये सम्पूर्ण संसार खुला पड़ा है। शास्त्रकार इस हकीकत की ओर किस दृष्टिसे देखते हैं इसका उल्लेख इस ग्रन्थ के दूसरे से पांचवें अधिकार तक किया गया है । यह जीव मेरे तेरे की ममता में इतना पागल होजाता है कि उसकी दृष्टि में यह भी नहीं आता कि उसके सिरपर यम का बड़ा भारी भय नाच रहा है। उसका सब वर्तन-व्यवहार इस प्रकार का होता है कि मानो उसको किसी दिन मरना ही