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पंडितो को संबोधन किया है। जिन्होंने संसार के वास्तविक वरूप को समझ कर पुद्गल एवं आत्मा के भेद को समझा हो उन्हीं को शाखकार पंडित कहते हैं ।
इस ग्रन्थ के सोलह द्वार.
समतैकलीनचित्तो, ललनापत्यस्वदेहममता मुक् । विषयकषायाद्यवशः, शास्त्रगुणैर्दमितचेतस्कः ३ वैराग्यशुद्धधर्मा, देवादितत्त्वविद्विरतिधारी । संवरवान् शुभवृत्तिः, साम्यरहस्यं भज शिवार्थिन् ४
॥ युग्मम् ॥
" हे मोक्षार्थी प्राणी ! तू समता विषय में लीन चिचवाला हो, स्त्री, पुत्र, पैसा और शरीर पर से ममता छोड दे, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि इन्द्रियों के विषय और क्रोध, मान, माया और लोभ आदि कषायों के वर्शाभूत न हो, शास्त्ररूप लगाम से तेरे मनरूप अश्व को काबू में रख, वैराग्य प्राप्त कर शुद्ध - निष्कलंक धर्मवान बन ( साधु के दश प्रकार के यतिधर्म और भावक के बारह व्रतों का आत्मगुणों में रमयता करनेवाला शुद्ध धर्मवाला बन, ) देवगुरुधर्म का शुद्ध स्वरूप जाननेवाला बन, सर्व प्रकार के सावद्य योग से निवृत्तिरूप विरति धारण कर, ( सतावन प्रकार के ) संवरवाला बन, तेरी वृतियों को शुद्ध रख और समता के रहस्य को भज. आर्यावृत. भावः -- इस युग्म में सामान्यतया प्रकीर्ण उपदेश करने
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१ आर्या के चार चरण होते है । प्रत्येक चरण में अनुक्रम से १९-१०-११-१५ मात्राये होती हैं ।