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अपर लिखे हुए गुण जिस प्राणी में हों उसको भी जैसे स्तुति की इच्छा रखना तथा महान आश्चर्यकारी काम करनेकाने को अहंकार लाना और सुकृत्य करनेवाले को भय रहित होना उचित नहीं है, उसी प्रकार यम के भय को जीतनेवाले को भी श्रात्म-चिन्तन नहीं छोड़ना चाहिये । जिन जिन महान् प्राषिबोंने ये गुण आदि प्राप्त किये हैं, उन्होंने भी न तो स्तुति की इच्छा रक्खी है, न अहंकार ही किया है; अतः ये सब हमको ठीक ठीक जानना चाहिये; परन्तु सूरिमहाराज तो इस जीव को कहते हैं कि-ऐसे गुण आदि यदि तेरे में हों और फिर तूं स्तुति मादि की इच्छा रखता हो तो ठीक भी है, परन्तु इनमें से तो एक भी तेरे में नज़र नहीं पातें फिर तूं किसके बल नाचता है ?
___ इस प्रकार तेरे में क्या गुण हैं और तूंने कौनसा बड़ा काम किया है, इसका ठीक ठीक विचार करके फिर उस प्रकार कार्य कर तब तुझे श्रात्म-स्वरूप जान पड़ेगा। उपदेश देने की यह नूतन पद्धति बहुत असरकारक है, कारण कि मनुष्य की तीक्ष्ण इच्छा को यह प्रेरित करती है और जागृत होने की इच्छा रखनेवाला अभ्यासी मुमुक्षु इसका तात्पर्य समझ कर आत्म-विचार करने को उद्यत हो जाता है ॥ १८ ॥
ज्ञानी का लक्षण गुणस्तवैर्यो गुणिनां परेषा
माक्रोशनिंदादिभिरात्मनश्च । मनः समं शीलति मोरते वा,
खियेत च व्यत्ययतः स वेत्ता HTML