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"दसरे गुणवान् प्राणियों के गुणों की स्तुति करते समय, अन्य पुरुष अपने पर क्रोध करें अथवा अपनी निन्दा करें उस समय, जो अपने मन को स्थिर रखता है अथवा उस समय जो भानंदित होता है और इसके विरुद्ध बात होने पर (जैसे परगुणनिन्दा अथवा प्रात्मप्रशंसा होने पर) जो दुखित होता है वह प्राणी ज्ञानी कहलाता है ॥ १९॥"
उपजाति
विवेचनः-दूसरे प्राणियों के दान, लोकसेवा, देशसेवा, जातिसेवा, धृति, क्षमा, ब्रह्मचर्य, औदार्य, गांभीर्य, निष्कपटता, सरलता आदि गुणों की प्रशंसा होते सुनकर ज्ञानी पुरुष अपने मन की स्थिरता भंग नहीं कर देता है । सामान्य पुरुष परगुणस्तवन सुन कर ईर्षा करने लगता है, चलते हुए भी बड़बड़ाता रहता है, कई बार गुण को अवगुण समझता है और अधमवृतिवाले तो सदैव गुणवान पुरुषों की निन्दा ही करते रहते हैं । शानी का लक्ष्य तो सर्वदा गुणों की पहचान करना और गुणों के प्राप्त करने का ही होता है । इसलिये जब जब वे सुनते हैं कि अमुक व्यक्ति में अमुक सद्गुण हैं तब तब मन को स्थिर रखकर वे उन गुणों की चर्चा सुनते हैं। इतना ही नहीं किन्तु गुणों का अस्तित्व विचार कर आनंदित होते हैं । गुणों के प्रत्यक्ष भाव को पहचाननेवाले तो प्रसन्न हो जाते हैं और गुणवान की ओर स्वाभाविकतया आकर्षित हो जाते हैं। दूसरे पुरुषों के गुणों को हलका नहीं करते, न उनकी किंमत घटाने जैसा गूढ वचन बोलते हैं । ज्ञानी पुरुष इस प्रकार के होते हैं कारण कि यही गुणप्राप्ति का साधन है । ' राग धरिजे जिहाँ गुण लहिये ' ये भाव जाननेवाले पुरुष स्वाभाविकतया समझते